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________________ ३४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०८/प्र०३ ___ छतरपुर (म.प्र.) के ही उपर्युक्त बड़ा मन्दिर में संवत् १२७२ (ईसवी सन् १२१५) के तीन प्रतिमालेखों में मूलसंघ और सरस्वतीगच्छ के नाम हैं तथा संवत् १३१० (ई० सन् १२५३) के एक यंत्रलेख में मूलसंघ, नन्दी-आम्नाय, बलात्कारगण, सरस्वतीगच्छ और कुन्दकुन्दाचार्य-आम्नाय का उल्लेख है। (देखिये, आगे प्रकरण ४/ शीर्षक ३.७)। इन प्रतिमालेखों का प्रमाण देते हुए सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री लिखते हैं-"भट्टारकसम्प्रदाय पृ. ४४ में प्रो० वी० पी० जोहरापुरकर ने यह संकेत किया है कि 'चौदहवीं सदी से मूलसंघ के साथ सरस्वतीगच्छ और उसके पर्यायवाची भारती, वागेश्वरी, शारदा आदि नाम जुड़े हैं' वह उक्त प्रतिमालेख को दृष्टिपथ में लेने से ठीक प्रतीत नहीं होता है।" (जिनमूर्ति-प्रशस्ति-लेख : कमल कुमार जैन/ प्रस्तावना / पृ.२० / पा.टि.१)। निष्कर्ष यह कि सरस्वतीगच्छ और बलात्कारगण ईसा की १०वीं शताब्दी में अस्तित्व में आये, जिससे फलित होता है कि कुन्दकुन्द बलगारगण या बलात्कारगण के प्रचलन से भी बहुत पूर्ववर्ती हैं। अतः बलात्कारगण की पट्टावली में उनका नाम होने पर भी वे इस गण के आचार्य या भट्टारक नहीं थे। ३. नन्दिसंघ का उदय भी कुन्दकुन्द के अस्तित्वकाल से बहुत बाद में हुआ है। यद्यपि इन्द्रनन्दी ने अपने श्रुतावतार में आचार्य माघनन्दी से पूर्ववर्ती आचार्य अर्हद्वली को 'नन्दी' आदि चतुर्विध संघों का जन्मदाता कहा है, तथापि श्रवणबेलगोल के शक सं० १३५५ (१४३३ ई०) के निम्नलिखित शिलालेख में कहा गया है कि भट्ट अकलंकदेव (६८० ई०) के दिवंगत हो जाने के बाद उनके अन्वय में उद्भूत मुनियों में देशभेद के कारण यह चार प्रकार का संघभेद हुआ था, किन्तु धर्माचरण में कोई विरोध नहीं था ततः परं शास्त्रविदां मुनीनामग्रेसरोऽभूदकलङ्कसूरिः। मिथ्यान्धकारस्थगिताखिलााः प्रकाशिता यस्य वचोमयूखैः॥ १८॥ तस्मिन् गते स्वर्गभुवं महर्षी दिवः पतीन्नर्तुमिव प्रकृष्टान्।। तदन्वयोद्भूतमुनीश्वराणां बभूवुरित्थं भुवि सङ्घभेदाः॥ १९॥ स योगिसङ्गश्चतुरः प्रभेदानासाद्य भूयानविरुद्धवृत्तान्। बभावयं श्रीभगवाजिनेन्द्रश्चतुर्मुखानीव मिथस्समानि॥ २०॥ देव-नन्दि-सिंह-सेन-सङ्घभेदवर्तिनां देशभेदतः प्रबोधभाजि देवयोगिनाम्। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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