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अ०८ / प्र० ३
कुन्दकुन्द के प्रथमतः भट्टारक होने की कथा मनगढन्त / ३१
अनुवाद - " विक्रमराज के राज्यपद पर आरूढ़ होने के दिन से संवत् ४ की चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को श्री भद्रबाहु आचार्य हुए। "
यहाँ पट्ट शब्द प्रमुख या प्रधान के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। कोश में भी पट्टमहिषी, पट्टराज्ञी पट्टशिष्य आदि शब्दों का प्रयोग मिलता है, जिनका अर्थ है प्रमुख या प्रधान रानी, २३ प्रमुख शिष्य आदि । उपर्युक्त वाक्यों में भी 'पट्ट' का अर्थ प्रधान मुनि या प्रसंगानुसार किसी पीठ या संस्था का प्रमुख है । मुनियों के प्रसंग में 'पट्ट' शब्द 'आचार्य' का पर्यायवाची है, जैसा कि उपर्युक्त ' श्रीभद्रबाहु आचार्य भये' शब्दों से स्पष्ट है । 'पट्टावली' शब्द भी 'पट्टानां प्रमुखाम् प्रधानानाम् आचार्याणां वा आवलिः पङ्क्ति:' इस विग्रह के अनुसार आचार्यों अथवा भट्टारक-सम्प्रदाय के प्रसंग में भट्टारकपीठ पर आसीन पुरुषों की परम्परा का वाचक है। पट्टावली के पर्यायवाची के रूप में 'गुर्वावली' शब्द का भी प्रयोग हुआ है ।
" १ संवत् ४ चैत्र सुदि १४ भद्रबाहु जी गृहस्थवर्ष २४ दीक्षावर्ष ३० पट्टस्थवर्ष २२, मास १०, दिन २७ --।" (The Indian Antiquary, Vol. XX, p.344)। इस वाक्य में 'आचार्य' के लिए पट्टस्थ ( पट्ट प्रधान पद पर स्थित ) शब्द का प्रयोग किया गया है । ( पट्टस्थवर्ष = पट्ट पर स्थित व्यक्ति, उसके द्वारा व्यतीत किये गये वर्ष)। अन्यत्र भी 'पट्ट' शब्द आचार्यपद एवं भट्टारकपद के लिए प्रयुक्त हुआ है। (देखिये, इसी अध्याय की पादटिप्पणी क्र. ६८, ६९, ७० ) । पट्टस्थ और पट्टधर शब्द एकार्थक हैं ।
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प्रो० हार्नले ने 'पट्ट' एवं 'पट्टस्थ' शब्दों का अँगरेजी अनुवाद Pontiff किया है, जिसका अर्थ धर्मगुरु होता है, पट्टाधीश नहीं । किन्तु, 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा' के लेखक डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री ने प्रो० हार्नले द्वारा तालिकारूप में प्रस्तुत अँगरेजी पट्टावली के स्वकृत हिन्दी अनुवाद में 'पट्टाधीश' शब्द का प्रयोग कर दिया । इसे आचार्य हस्तीमल जी ने पट्टावली का मूलपाठ मान लिया है, जो उनका भ्रम है। यदि उन्होंने मूलपाठ देखा होता, तो यह भ्रम न होता ।
पट्टावलियों के मूलपाठ में किसी आचार्य को भट्टारक शब्द से भी अभिहित नहीं किया गया है। केवल एक स्थान पर यह कहा गया है कि विक्रम सं० १३७५ में गुजरात में भट्टारक प्रभाचन्द्र का एक आचार्य (सेवक ) था । एक श्रावक ने प्रभाचन्द्र को प्रतिष्ठा सम्पन्न कराने के लिए बुलाया था, किन्तु वह नहीं आ सके। तब श्रावक ने उस आचार्य (सेवक ) को सूरिमन्त्र देकर 'भट्टारक' की उपाधि प्रदान कर दी और उससे प्रतिष्ठा सम्पन्न करायी। तब से गुजरात में पट्ट
२३. The principal wife of a king. ( M. Monier Williams Sans. - Eng. Dictonary.)
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