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अ०८/ प्र० २ कुन्दकुन्द के प्रथमतः भट्टारक होने की कथा मनगढन्त / २९
___ "बहुरि ता के पीछे संवत् केवल छहवीस २६ का फाल्गुन शुक्ल १४ चतुर्दशी दिन मैं गुप्तगुप्ति नाम आचार्य जाति परवार भये। ता का गृहस्थ वर्ष २२ वाईस का। वहुरि दीक्षावर्ष १४ चौदह। पट्टस्थवर्ष ९ नौ, मास ६ छह; दिन २५ पच्चीस, विरह दिन ५ पाँच। या की सर्वायुवर्ष पैसठि ६५ मास ७ सात ६५।७ का जानना ॥१९
__इस पट्टावली में पट्टधरों के स्थानविशेष से सम्बद्ध होने का भी उल्लेख किया गया है। यथा
"ता के पीछे भद्रबाहु सौं लेर मेरुकीर्ति ताँई पट्ट छव्वीस पर्यन्त दक्षिणदेश विर्षे भद्दलपुरी में भए ॥ २६॥ वहुरि महाकीर्ति आदि लेर महीचन्द्रान्त ताँई छव्वीस पट्ट मालवा विषै। ता मैं अठारह १८ उज्जैनी मैं भये। चन्देरी के विर्षे ४ च्यार भए। भेल मैं ३ तीन भए। कुण्डलपुर एक भए १॥ यह सर्व छव्वीस २६ भए॥ वहुरि ता के पीछे वृषभनन्दि आदि सिंहकीर्ति अन्त ताँई पट्ट वारह १२ वा विषै भए॥ १२॥ वहुरि ता के पीछे कनककीर्ति आदि वसन्सकीर्त्यन्त पट्ट दश १० चीतोड के विषै भए॥ १०॥ वहुरि सूरचन्द्र १, माघचन्द्र १, ज्ञानकीर्त्ति १, नरेन्द्रकीर्त्ति १, ये च्यार पट्ट वरै भये॥ ४॥ वहुरि प्रोष्ठलकीर्ति आदि प्रभाचन्द्रान्त पट्ट ६ छह अजमेर भये। ६। वहुरि पद्मनन्दी आदि शुभचन्द्रान्त पट्ट २ दोय गुजरातदेश विर्षे वाग्वर देश मैं भये॥ वहुरि सकलकीर्ति आदि वाग्वर देश मैं भये। ऐसैं श्रीमूलसङ्घ नन्द्याम्नाय सारस्वतीगच्छ बलात्कारगण की पट्टावली अनुक्रम तैं जाननाँ ऐसें ॥"२०
प्रो० हार्नले द्वारा A और B पट्टावलियों के आधार पर निर्मित्त तालिका ही 'इण्डियन ऐण्टिक्वेरी की पट्टावली' के नाम से जानी जाती है।
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४ इण्डियन-ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली के अनुसार कुन्दकुन्द का समय
पूर्वोद्धृत इण्डियन ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली के अनुसार आचार्य कुन्दकुन्द का जन्म ईसा से ५२ वर्ष पूर्व हुआ था, ११ वर्ष की आयु में उन्होंने मुनिदीक्षा ग्रहण की थी और ईसा से ८ वर्ष पहले ४४ वर्ष की अवस्था में वे आचार्यपद पर प्रतिष्ठित हुए थे। वे ५१ वर्ष १० मास एवं १० दिन तक आचार्यपद पर आसीन रहे, उसके ५ दिन बाद स्वर्ग सिधार गये। इस प्रकार उनका जीवनकाल ९५ वर्ष १० मास और १५ दिन था।
२०. Ibid., P. 69.
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