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अ० १२ / प्र०४
कसायपाहुड / ७६७ यह कर्मप्रकृति-चूर्णिकार का मत है। पञ्चसंग्रह-प्रकृतिसंक्रम गाथा ११ की मलयगिरिटीका से भी इसी मत की पुष्टि होती है। यथा
"तस्यैव चौपशमिकसम्यग्दृष्टेरष्टाविशंतिसत्कर्मणः आवलिकाया अभ्यन्तरे वर्तमानस्य सम्यग्मिथ्यात्वं सम्यक्त्वे न संक्रामति।" (प्रकृति सं./पत्र १०)।
४. पुरुषवेद की पतद्ग्रहता कब नष्ट हो जाती है, इस विषय में कर्मप्रकृतिचूर्णिकार का जो मत है, उसी मत का निर्देश पंचसंग्रह की मलयगिरि-टीका में दृष्टिगोचर होता है। यथा
"पुरुषवेदस्य प्रथमस्थितौ द्यावालिकाशेषायां प्रागुक्तस्वरूपं आगालो व्यवच्छिद्यते, उदीरणा तु भवति, तस्मादेव समयादारभ्य षण्णां नोकषायाणां सत्कं दलिकं पुरुषवेदे न संक्रमयति।" (पंच.चा.मो.ड./ पत्र १९१)।
___ श्वे० पंचसंग्रह के ये उद्धरण हैं जो मात्र कर्मप्रकृतिचूर्णि का पूरी तरह अनुसरण करते हैं, किन्तु कषायप्राभृत और उसकी चूर्णि का अनुसरण नहीं करते। इससे स्पष्ट है कि कषायप्राभृत और उसकी चूर्णि को श्वेताम्बर-आचार्यों ने कभी भी अपनी परम्परा की रचना-रूप में स्वीकार नहीं किया।
यहाँ हमारे इस बात के निर्देश करने का एक खास कारण यह भी है कि मलयगिरि के मतानुसार जिन पाँच ग्रन्थों का पंचसंग्रह में समावेश किया गया है, उनमें एक कषायप्राभृत भी है। यदि चन्द्रर्षिमहत्तर को पंचसंग्रह° श्वेताम्बर-आचार्यों की कृतिरूप में स्वीकार होता, तो उन्होंने जैसे कर्मप्रकृति और चूर्णि को अपनी रचना में प्रमाणरूप से स्वीकार किया है, वैसे ही वे कषायप्राभृत और चूर्णि को भी प्रमाणरूप में स्वीकार करते। और ऐसी अवस्था में जिन-जिन स्थलों पर उन्हें कषायप्राभृत और कर्मप्रकृति में पदार्थभेद दृष्टिगोचर होता, उसका उल्लेख वे अवश्य करते। किन्तु उन्होंने ऐसा न कर मात्र कर्मप्रकृति और उसकी चूर्णि का अनुसरण किया है। इससे स्पष्ट विदित होता है कि चन्द्रर्षिमहत्तर कषायप्राभृत और उसकी चूर्णि को श्वेताम्बर-परम्परा का नहीं स्वीकार करते रहे।
यहाँ हमने मात्र उन्हीं पाठों को ध्यान में रखकर चर्चा की है, जिनका निर्देश उक्त प्रस्तावनाकार ने किया है। इनके सिवाय और भी ऐसे पाठ हैं, जो कर्मप्रकृति और पंचसंग्रह में एक ही प्रकार की प्ररूपणा करते हैं। परन्तु कषायप्राभृत-चूर्णि में उनसे भिन्न प्रकार की प्ररूपणा दृष्टिगोचर होती है। उसके लिए हम एक उदाहरण
२०. 'पंचसंग्रह' के स्थान में 'कषायप्राभृत' होना चाहिए। लेखक ने असावधानी-वश 'पंचसंग्रह'
लिख दिया है।
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