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________________ अ०१२ / प्र०३ कसायपाहुड /७५९ अनुवाद-"क्रोध, कोप, रोष, अक्षमा, संज्वलन, कलह, वृद्धि, झंझा, द्वेष और विवाद, ये दस क्रोध के एकार्थक नाम हैं।" (८६)। "मान, मद, दर्प, स्तम्भ, उत्कर्ष, प्रकर्ष, समुत्कर्ष, आत्मोत्कर्ष, परिभव और उत्सिक्त, ये दश नाम मान कषाय के हैं।" (८७)। "माया, सातियोग, निकृति, वंचना, अनृजुता, ग्रहण, मनोज्ञमार्गण, कल्क, कुहक, गृहन और छन्न, ये ग्यारह मायाकषाय के वाचक है।" (८८)। "काम, राग, निदान, छन्द, स्वत, प्रेय, दोष, स्नेह, अनुराग, आशा, इच्छा, मूर्छा, गृद्धि, साशता या शास्वत, प्रार्थना, लालसा, अविरति, तृष्णा, विद्या और जिह्वा, ये बीस लोभ के एकार्थक नाम कहे गये हैं।" (८९-९०)। ये ही पर्यायवाची श्वेताम्बरपरम्परा के भगवतीसूत्र के बारहवें शतक और समवायांग में भी हैं "मोहणिज्जस्स णं कम्मस्स बावन्नं नामधेजा पण्णत्ता, तं जहा–कोहे कोवे रोसे दोसे अखमा संजलणे कलहे चंडिक्के भंडणे विवाए। ___. "माणे मदे दप्पे थंभे अत्तुक्कोसे गव्वे परपरिवाए उक्कोसे अवक्कोसे उन्नए उन्नामे। "माया उवही नियडी बलए गहणे णूमे कक्के कुरुए दंभे कूडे जिम्हे किब्बिसए अणायरणया, गृहणया वंचणया पलिकुंचणया सातिजोगे। "लोभे इच्छा मुच्छा कंखा गेही तिण्हा भिजा अभिजा कामासा भोगासा जीवियासा मरणासा नंदी रागे॥"१७ कसायपाहुड और भगवतीसूत्र-समवायांग में इन पर्यायवाची नामों का साम्य बतलाकर उक्त यापनीयपक्षधर विद्वान् ने यह सिद्ध करना चाहा है कि कसायपाहुड उस परम्परा का ग्रन्थ है, जिसमें समवायांग, भगवतीसूत्र आदि की रचना हुई, अर्थात् श्वेताम्बरयापनीय-मातृपरम्परा का ग्रन्थ है। दिगम्बरपक्ष जैसा कि पूर्व में सिद्ध किया गया है, श्वेताम्बर-यापनीय-मातृपरम्परा कपोलकल्पित है। अतः कसायपाहुड को कपोलकल्पित परम्परा का ग्रन्थ कहना दुहरी कपोलकल्पना है। १७.समवायांग / समवाय ५२ (जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय / पृ.८९)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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