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अ०१२/प्र०३
कसायपाहुड / ७५५
मान्य विद्वान् की यह टिप्पणी समीचीन नहीं है। आध्यात्मिक विकास का साधन योग्य शरीर ही है, अयोग्य शरीर नहीं। जैसे देवशरीर, तिर्यंचशरीर और नारकशरीर से आध्यात्मिक विकास की साधना संभव नहीं है, वैसे ही वज्रवृषभनाराचसंहननरहित, वस्त्रपरिग्रहत्याग की योग्यता से रहित एवं सम्मूर्छनजीवों की प्रचुर उत्पत्ति एवं मरण के स्थानभूत मानवशरीर से भी आध्यात्मिक विकास की साधना असंभव है। ऐसा शरीर मानव-स्त्री का होता है, अतः वह उच्च आध्यात्मिक विकास की साधना के योग्य नहीं है। इसलिए उसे धारण करनेवाला जीव पाँचवे गुणस्थान से ऊपर नहीं उठ सकता। किन्तु मानवपुरुषशरीर उच्चतम आध्यात्मिक विकास की साधना के योग्य होता है, अतः उसे धारण करनेवाला जीव स्त्रीवेद का उदय रहते हुए भी नौवें गुणस्थान तक पहुँच सकता है। स्त्रीवेद तो कषाय है। जैसे अन्य कषायों का उदय मानवपुरुषशरीरधारी जीव के नौवें गुणस्थान तक पहुँचने में बाधक नहीं होता, वैसे ही स्त्रीवेद का उदय भी बाधक नहीं होता। यह न तो तनिक भी अयुक्तिसंगत है, न अध्यात्मवाद के विपरीत। कसायपाहुड के कर्ता को यही स्वीकार्य है कि पुरुषशरीरधारी मनुष्य ही स्त्रीवेद के उदय में नौवें गुणस्थान तक आध्यात्मिक विकास कर सकता है, इसलिए उन्हें स्त्रीमुक्ति कदापि स्वीकार्य नहीं हो सकती।
- उक्त विद्वद्वर का यह कथन भी तथ्य के विपरीत है कि सातवीं शती के पूर्व स्त्रीमुक्ति के विवाद का दोनों परम्पराओं में कोई संकेत नहीं है। (जै.ध.या.स./पृ.८८)। द्वितीय अध्याय में सोदाहरण स्पष्ट किया गया है कि प्रथम शती ई० के बोटिक शिवभूति ने, जो श्वेताम्बरत्व छोड़कर दिगम्बर हो गया था, सवस्त्रमुक्ति का सर्वथा विरोध किया था, जिसमें स्त्रीमुक्ति का विरोध भी गर्भित था। उसने अपने सम्प्रदाय में केवल दो पुरुषों को दीक्षित किया था, स्त्रियों में अपनी बहन उत्तरा तक को दीक्षा नहीं दी। यह बात तो पूर्व श्वेताम्बराचार्यों ने भी स्वीकार की है कि शिवभूति स्त्रीमुक्ति-विरोधी था। तथा ईसापूर्वोत्तर प्रथम शताब्दी के आचार्य कुन्दकुन्द ने, प्रथम शती ई० के 'भगवती आराधना' और 'मूलाचार' के कर्ताओं ने एवं पाँचवीं शती ई० के आचार्य पूज्यपाद ने अपने ग्रन्थों में स्त्रीमुक्ति का निषेध किया है।
इस तरह कसायपाहुड में स्त्रीमुक्ति का समर्थन नहीं है, अतः वह दिगम्बरग्रन्थ ही है, स्त्रीमुक्ति-समर्थक श्वेताम्बर, यापनीय अथवा श्वेताम्बर-यापनीय-मातृपरम्परा का ग्रन्थ नहीं है।
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