SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 798
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०१२ / प्र०३ इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि जिस श्वेताम्बर-यापनीय-मातृपरम्परा से उत्तराधिकार में कसायपाहुड की प्राप्ति बतलायी गयी है, उसका अस्तित्व ही नहीं था। अतः उससे किसी वस्तु का उत्तराधिकार में प्राप्त होना असंभव था। इसलिए जब अर्धमागधी कसायपाहुड के उत्तराधिकार में प्राप्त होने की बात ही कपोलकल्पित है, तब उसके शौरसेनीकरण की बात का कपोलकल्पित होना स्वतः सिद्ध है। इस तरह यतिवृषभ को यापनीय सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत किया गया यह हेतु भी असत्य है। यतिवृषभ यापनीय नहीं दिगम्बर थे। उन्हें अपने दिगम्बर गुरुओं, आर्यमंक्षु और नागहस्ती से शौरसेनी में ही कसायपाहुड की गाथाएँ प्राप्त हुई थीं, अतः उनके शौरसेनीकरण की आवश्यकता ही नहीं थी। श्वेताम्बरपरम्परा में अर्धमागधी-कसायपाहुड का अभाव। श्वेताम्बरसाहित्य में ऐसा उल्लेख कहीं नहीं है कि कसायपाहुड नाम का कोई श्वेताम्बरपरम्परा का ग्रन्थ है और उसके रचयिता गुणधर, गुणन्धर, आर्यमंक्षु या नागहस्ती हैं अथवा आर्यमंक्षु और नागहस्ती को आचार्यपरम्परा से उसका ज्ञान प्राप्त हुआ था और उनके पादमूल में बैठकर यतिवृषभ ने उसका अर्थश्रवण किया था। कसायपाहुड की अर्धमागधी में कोई प्रति उपलब्ध नहीं है, न श्वेताम्बरशास्त्रभण्डारों में, न अन्यत्र। न ही श्वेताम्बरसाहित्य की सूचियों में या किसी श्वेताम्बरग्रन्थ में अर्धमागधी कसायपाहुड के अस्तित्व का उल्लेख है। यह भी नहीं माना जा सकता कि भारतवर्ष के सभी श्वेताम्बर शास्त्रभण्डारों और भाण्डारकर ओरिएण्टल रिसर्च इन्स्टिट्यूट, पूना जैसे पुराने ग्रन्थालयों से केवल अर्धमागधी-कसायपाहुड की प्रतियाँ एकसाथ लुप्त हो गयीं, बाकी सब ग्रन्थ सुरक्षित रहे। ऐसा तो कोई शत्रु भी योजनाबद्ध तरीके से करना चाहे, तो नहीं कर सकता, तब स्वयं श्वेताम्बरों के द्वारा ऐसा कैसे हो सकता था? 'जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय' के लेखक ने स्वयं अपनी यह मान्यता प्रकट की है कि आचार्य यतिवृषभ का स्थितिकाल ईसा की छठी-सातवीं शती है। (पृ.१११)। उनकी मान्यता के अनुसार यदि यतिवृषभ ने कसायपाहुड का शौरसेनीकरण किया हो, तो इसी समय किया होगा। इसके पूर्व पाँचवी शती ई० में वलभी में देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण द्वारा सभी श्वेताम्बरग्रन्थ पुस्तकारूढ़ किये जा चुके थे। इससे स्पष्ट है कि यतिवृषभ को कसायपाहुड की अर्धमागधी प्रति उपलब्ध रही होगी, जिसके आधार पर उन्होंने उसका शौरसेनीकरण किया होगा। अतः जब ईसा की छठी-सातवीं शती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy