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________________ ७४२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०१२ / प्र०३ "सम्भावना यही है कि आर्यमंक्षु और नागहस्ती से अध्ययन करके यतिवृषभ ने ही इसे शौरसेनी प्राकृत का वर्तमान स्वरूप प्रदान कर चूर्णिसूत्र की रचना की हो।" (जै.ध.या.स./पृ.८५)। "हमने आगमों की चर्चा के प्रसंग में देखा था कि आगमों का शौरसेनीकरण यापनीयपरम्परा का वैशिष्ट्य रहा है। इसी प्रकार कसायपाहुड का शौरसेनीकरण भी यापनीयपरम्परा की ही देन है।" (जै.ध.या.स./पृ.८६)। __ "हो सकता है इस (कसायपाहुड) पर चूर्णिसूत्रों के रचयिता यतिवृषभ यापनीय हों, क्योंकि यापनीयों में अपने नाम के आगे 'यति' शब्द लगाने की प्रवृत्ति रही है, जैसे-यतिग्रामाग्रणी भदन्त शाकटायन।" (जै. ध.या.स./ पृ.८७)। दिगम्बरपक्ष डॉ० ए० एन० उपाध्ये ने यापनीयसंघ के विषय में विस्तृत अनुसन्धान किया है। इस संघ के आचार्यों की कोई पट्टावली या गुर्वावली नहीं है। उनकी विशेष जानकारी दक्षिणभारत में विभिन्न राजाओं के द्वारा संघ को दिये गये दान का वर्णन करनेवाले शिलालेखों से ही मिलती है। ये शिलालेख ५वीं शती ई० से १४ वीं शती ई० तक के हैं। इनमें विभिन्न गणों के अनेक यापनीय-आचार्यों के नामों का उल्लेख है, जैसे दामकीर्ति, जयकीर्ति, बन्धुसेन, कुमारदत्त, अर्हनन्दी, शुभचन्द्र, सिद्धान्तदेव आदि। किन्तु किसी भी अभिलेख में यतिवृषभ जैसे प्रसिद्ध आचार्य का नाम नहीं है। कसायपाहुड जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ पर जिसने चूर्णिसूत्र लिखे तथा तिलोयपण्णत्ती जैसे महान् ग्रन्थ की रचना की, उस आचार्य के नाम का यापनीय-आचार्यों और साधुओं का उल्लेख करनेवाले लेखों में उपलब्ध न होना यही सिद्ध करता है कि यतिवृषभ यापनीयसंघ के आचार्य नहीं थे, अपितु दिगम्बराचार्य थे। यतिवृषभ यापनीयमत-विरोधी 'तिलोयपण्णत्ती' के कर्ता कसायपाहुड पर चूर्णिसूत्र लिखनेवाले यतिवृषभ तिलोयपण्णत्ती ग्रन्थ के भी कर्ता हैं। इसमें उन्होंने सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति, केवलिभुक्ति आदि यापनीयमत-विरोधी सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इससे सिद्ध है कि वे दिगम्बरपरम्परा के आचार्य थे, यापनीयपरम्परा के नहीं। तिलोयपण्णत्ती के यापनीयमतविरोधी सिद्धान्तों का सोदाहरण निरूपण तिलोयपण्णत्ती नामक सप्तदश अध्याय में द्रष्टव्य है। ५. 'जैन सम्प्रदाय के यापनीय संघ पर कुछ और प्रकाश'/ 'अनेकान्त'। महावीरनिर्वाण विशेषांक/ सन् १९७५ ई०। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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