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________________ अ० १२ / प्र०३ कसायपाहुड / ७३१ ग-"इतना निश्चित है कि आर्यमंक्षु और आर्य नागहस्ती न तो दिगम्बर आचार्य हैं और न यापनीय ही। यद्यपि इतना भी निश्चित है कि वे श्वेताम्बरों के समान यापनीयों के भी पूर्वज हैं।" (जै.ध.या.स./ पृ.८७)। दिगम्बरपक्ष कसायपाहुड के कर्ता आचार्य गुणधर हैं, आर्यमंक्षु और नागहस्ती नहीं। इन्होंने तो कसायपाहुड का ज्ञान आचार्यपरम्परा से प्राप्त किया था। कसायपाहुड के कर्ता गुणधर का नाम श्वेताम्बरों और यापनीयों की स्थविरावलियों में नहीं मिलता। ऊपर उद्धृत वचनों में मान्य लेखक ने स्वयं स्वीकार किया है कि "आचार्य गुणधर कौन थे और किस परम्परा के थे, इसकी सूचना हमें न प्राचीन आगमिक श्वेताम्बर स्थविरावलियों से मिलती है और न दिगम्बर-पट्टावलियों से।" आगे जो उन्होंने आर्यमंक्षु और नागहस्ती के साथ गुणधर के नाम का भी उल्लेख श्वेताम्बर-पट्टावलियों में बतला दिया है, वह उनके उक्त वचनों से असत्य सिद्ध हो जाता है। अतः गुणधर को दिगम्बरेतर परम्परा का सिद्ध करने के लिए बतलाया गया यह हेतु कि उनका श्वेताम्बर-स्थविरावलियों में नाम है, असत्य है। इस प्रकार असत्य हेतु का प्रयोग कर कसायपाहुड को दिगम्बरेतर परम्परा का ग्रन्थ सिद्ध करने की चेष्टा की गई है। श्वेताम्बर और यापनीय-स्थविरावलियों में गुणधर का नाम उपलब्ध न होने से सिद्ध है कि उनका सम्बन्ध न तो श्वेताम्बरपरम्परा से था, न यापनीयपरम्परा से, न इन दोनों की मन:कल्पित मातृपरम्परा से। श्वेताम्बर-यापनीय साहित्य में गुणधर का नाम अनुपलब्ध श्वेताम्बर और यापनीय परम्पराओं के किसी भी ग्रन्थ में आचार्य गुणधर का नाम नहीं आया है, न ही इस बात की चर्चा है कि गुणधर कसायपाहुड के कर्ता हैं। सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री ने भी लिखा है-"श्वेताम्बरपरम्परा में न तो गुणधराचार्य का नामोनिशां मिलता है और न यतिवृषभ का।" (जै.सा.इ./ भा.१/पृ.१७)। इसके विपरीत दिगम्बरपरम्परा में जयधवलाटीका तथा इन्द्रनन्दी एवं विबुधश्रीधर के श्रुतावतारों में स्पष्ट कहा गया है कि आचार्य गुणधर ने कसायपाहुड के गाथासूत्रों की रचना की थी। जयधवलाकार श्री वीरसेन स्वामी ग्रन्थ (ज.ध./क.पा./ भा.१) के आरम्भ में मंगलाचरण करते हुए कहते हैं जेणिह कसायपाहुडमणेयणयमुज्जजलं अणंतत्थं। __ गाहाहि विवरियं तं गुणहरभडारयं वंदे॥ ६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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