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७३२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ० १२ / प्र० ३
अनुवाद - " जिन्होंने इस आर्यावर्त में अनेक नयों से उज्ज्वल और अनन्तपदार्थों से व्याप्त कसायपाहुड का गाथाओं द्वारा व्याख्यान किया, उन गुणधर - भट्टारक को मैं ( आचार्य वीरसेन) नमस्कार करता हूँ ।"
आचार्य इन्द्रनन्दी (१०वीं शती ई०) भी श्रुतावतार में लिखते हैं
अथ गुणधरमुनिनाथः सकषायप्राभृतान्वयं तत्प्रायोदोषप्राभृतकापरसंज्ञां साम्प्रतिकशक्तिमपेक्ष्य ॥ १५२ ॥
त्र्यधिकाशीत्या युक्तं शतं च मूलसूत्रगाथानाम् । विवरणगाथानां च त्र्यधिकं पञ्चाशतकमकार्षीत् ॥ १५३ ॥
अनुवाद- 'तदनन्तर गुणधर मुनिनाथ अपनी वर्तमान शक्ति को देखकर कषायप्राभृत अपरनाम प्रायोदोषप्राभृत (पेज्जदोसपाहुड) की रचना की, जिसमें १८३ गाथासूत्र और ५३ विवरण गाथाएँ हैं ।"
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विबुधश्रीधर ने भी 'श्रुतावतार' में लिखा है - " ज्ञानप्रवादपूर्वस्य नाम त्रयोदशमो वस्तुस्तदीयतृतीयप्राभृतवेत्ता गुणधरनामगणी मुनिर्भविष्यति । सोऽपि नागहस्तमुनेः पुरतस्तेषां सूत्राणामर्थान् प्रतिपादयिष्यति । तयोर्गुणधरनागहस्तिनामभट्टारकयोरुपकण्ठे पठित्वा तानि सूत्राणि यतिनायकाभिधो मुनिस्तेषां गाथासूत्राणां वृत्तिरूपेण षट्सहस्त्रप्रमाणं चूर्णिनामशास्त्रं करिष्यति ।" (सिद्धान्तसारादिसंग्रह / पृ. ३१७) ।
अनुवाद — " ज्ञानप्रवादपूर्व की तेरहवीं वस्तु के तृतीयप्राभृत के वेत्ता गुणधर नाम के गणी मुनि होंगे। वे भी नागहस्तिमुनि के समक्ष उन सूत्रों के अर्थ का प्रतिपादन करेंगे। उन गुणधर और नागहस्ती भट्टारकों के समीप उक्त सूत्रों का पठन कर यतिनायक (यतिवृषभ) नाम के मुनि उन गाथासूत्रों की वृत्ति के रूप में छह हजार सूत्रोंवाले चूर्णि नामक शास्त्र की रचना करेंगे।"
इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतार में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आचार्य अर्हद्बलि ने अनेक संघों की स्थापना की थी, उनमें एक गुणधरसंघ भी था, जिसका नाम संभवतः उन्होंने अपने पूर्ववर्ती आचार्य गुणधर की स्मृति में रखा था
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ये शाल्मली - महाद्रुम-मूलाद्यतयोऽभ्युपगतास्तेषु । कांश्चिद् गुणधरसंज्ञकान्कांश्चिद् गुप्ताह्वयानकरोत् ॥ ९४ ॥
इस प्रकार श्वेताम्बरसाहित्य में कसायपाहुड के कर्त्ता के रूप में आचार्य गुणधर का कोई उल्लेख न होना और दिगम्बरसाहित्य में उल्लेख मिलना, इस बात का प्रमाण है कि उनका सम्बन्ध न तो श्वेताम्बर - परम्परा से था, न यापनीय परम्परा से और न इन दोनों की मन: कल्पित मातृपरम्परा से, अपितु दिगम्बर- परम्परा से था ।
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