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________________ तृतीय प्रकरण प्रतिपक्षी हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता यद्यपि पूर्वोक्त अन्तरंग एवं बहिरंग प्रमाणों से कसायपाहुड के दिगम्बरग्रन्थ होने में कोई सन्देह नहीं रहता, फिर भी उसके यापनीयग्रन्थ होने का सन्देह उत्पन्न करनेवाले जो हेतु प्रस्तुत किये गये हैं, उनकी असत्यता एवं हेत्वाभासता का उद्घाटन आवश्यक है, जिससे उसके दिगम्बरग्रन्थ होने में सन्देह के लिए रंचमात्र भी स्थान न रहे। अतः प्रस्तुत प्रकरण में यापनीयपक्षधर हेतुओं की असत्यता एवं हेत्वाभासता का प्रकाशन किया जा रहा है। श्वेताम्बर-यापनीय स्थविरावलियों में गुणधर का नाम नहीं यापनीयपक्ष 'जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय' ग्रन्थ के लेखक डॉ० सागरमल जी इस ग्रन्थ में लिखते हैं-"कसायपाहुड के कर्ता के रूप में गुणधर का और चूर्णिकार के रूप में यतिवृषभ का उल्लेख सर्वप्रथम जयधवलाकार ने किया है। आचार्य गुणधर कौन थे और किस परम्परा के थे, इसकी सूचना हमें न प्राचीन श्वेताम्बर आगमिक स्थविरावलियों से और न ही दिगम्बर-पट्टावलियों से प्राप्त होती है। जयधवला में भी मात्र यही कहा गया है कि आचार्यपरम्परा से आती हुई सूत्रगाथाएँ आर्यमंक्षु और नागहस्ती को प्राप्त हुईं, पुनः उन दोनों के पादमूल में बैठकर गुणधर आचार्य के मुखकमल से निकली हुईं उन १८० गाथाओं के अर्थ को सम्यक् प्रकार से श्रवण कर यतिवृषभ भट्टारक ने प्रवचनवात्सल्य के लिए चूर्णिसूत्रों की रचना की।" (जै.ध.या.स./ पृ.८२-८३)। वे आगे कहते हैं क-"प्राचीन दिगम्बर-पट्टावलियों में गुणधर, आर्यमंक्षु और नागहस्ती का, जो कि इसके कर्ता या प्रणेता माने जाते हैं, उल्लेख नहीं होने से और श्वेताम्बर-पट्टावलियों में इनका उल्लेख होने से यह सिद्ध होता है कि यह मूलतः दिगम्बरपरम्परा का ग्रन्थ नहीं है।" (जै.ध.या.स./ पृ.८६-८७)। ख-"कल्पसूत्र, नन्दीसूत्र आदि में तथा मथुरा के शिलालेखों में आर्यमंक्षु और आर्य नागहस्ती का उल्लेख होने से एवं आर्य नागहस्ती को कर्मशास्त्र का ज्ञाता कहे जाने से यह सिद्ध होता है कि यह ग्रन्थ उस परम्परा में निर्मित हुआ है, जो श्वेताम्बरों और यापनीयों की पूर्वज थी।" (जै.ध.या.स./ पृ.८७)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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