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________________ ७२८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०१२ / प्र०२ ___इससे सिद्ध है कि कसायपाहुड की रचना श्वेताम्बर स्थविरावलियों में उल्लिखित आर्यमंक्षु और नागहस्ती से भी पूर्व हुई थी। और यापनीयसम्प्रदाय का जन्म तो उसके लगभग ५५० वर्ष बाद हुआ था। अतः उत्पत्तिकाल की पूर्वापरता से भी सिद्ध होता है कि कसायपाहुड की रचना न यापनीयपरम्परा में हुई है, न श्वेताम्बरपरम्परा में, न इन दोनों की मन:कल्पित मातृपरम्परा में। उसकी रचना दिगम्बराचार्य गुणधर ने की है। २.२. अन्य बहिरंग तथ्य ___ नीचे उल्लिखित तथ्यों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि कसायपाहुड दिगम्बर-ग्रन्थ है १. कसायपाहुड के कर्ता गुणधर और चूर्णिसूत्रकार यतिवृषभ के नाम श्वेताम्बरयापनीय-स्थविरावलियों में नहीं मिलते। २. श्वेताम्बर-यापनीय-साहित्य में में भी गुणधर तथा उनके द्वारा कसायपाहुड की रचना, आर्यमंक्षु और नागहस्ती द्वारा आचार्यपरम्परा से उसके ज्ञान की प्राप्ति, तथा इन दोनों के चरणकमलों में बैठकर यतिवृषभ द्वारा कसायपाहुड के अर्थश्रवण एवं चूर्णिसूत्र लिखे जाने का कोई विवरण नहीं है, जबकि दिगम्बरसाहित्य में है। ___३. दिगम्बरसाहित्य में अर्हद्बलि द्वारा गुणधर के नाम से एक गुणधरसंघ बनाये जाने का भी उल्लेख है। ४. जिन आर्यमंक्षु और नागहस्ती को आचार्यपरम्परा से कसायपाहुड की गाथाएँ प्राप्त होने का कथन जयधवलाकार ने किया है, वे श्वेताम्बर-स्थविरावलियों में निर्दिष्ट आर्यमंक्षु और नागहस्ती से भिन्न थे। ५. यह ग्रन्थ, परम्परा से दिगम्बरजैन आम्नाय में ही प्राचीन दिगम्बर-आगम के रूप में मान्य और प्रचलित है, श्वेताम्बर और यापनीय सम्प्रदायों में नहीं। ६. दिगम्बर शास्त्रभण्डारों में ही यह आज तक सुरक्षित चला आ रहा है, श्वेताम्बर और यापनीय भंडारों में इसका कभी अस्तित्व नहीं रहा। ७. दिगम्बराचार्यों ने ही इस पर चूर्णिसूत्र और टीकाएँ लिखी हैं, श्वेताम्बर और यापनीय आचार्यों ने नहीं। श्वेताम्बरसाहित्य में आवश्यकचूर्णि, दशवैकालिकचूर्णि आदि के समान कसायपाहुडचूर्णि उपलब्ध नहीं है। यदि यह श्वेताम्बरपरम्परा का ग्रन्थ होता, तो इस पर किसी श्वेताम्बराचार्य द्वारा चूर्णि, नियुक्ति, भाष्य या वृत्ति अवश्य लिखी जाती। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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