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द्वितीय प्रकरण दिगम्बरग्रन्थ होने के प्रमाण
अन्तरंग प्रमाण यापनीयमत-विरुद्ध सिद्धान्तों की उपलब्धि यहाँ वे अन्तरंग प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि कसायपाहुड न तो यापनीयग्रन्थ है, न श्वेताम्बरग्रन्थ, न दोनों की कपोलकल्पित मातृपरम्परा का ग्रन्थ, अपितु दिगम्बरग्रन्थ है। वे अन्तरंग प्रमाण हैं कसायपाहुड में यापनीय एवं श्वेताम्बर मतों के विरुद्ध सिद्धान्तों की उपलब्धि। १.१. वेदत्रय एवं वेदवैषम्य का प्रतिपादन
कसायपाहुड में भाववेदत्रय और वेदवैषम्य स्वीकार किये गये हैं। निम्नलिखित गाथाओं से इस बात की पुष्टि होती है
अणमिच्छ-मिस्स-सम्मं अट्ठ णसित्थिवेदछक्कं च। पुंवेदं च खवेदि दु कोहादीए च संजलणे॥ १॥
क्षपणाधिकार-चूलिका/ क.पा./ भा.१६ । अनुवाद-"मोक्षमार्ग पर आरूढ़ हुआ जीव अनन्तानुबन्धीचतुष्क, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति, इन सात प्रकृतियों का क्षपकश्रेणी चढ़ने से पूर्व ही क्षपण करता है। पुनः क्षपकश्रेणी चढ़ते हुए अनिवृत्तिकरण-गुणस्थान में अन्तरकरण के पश्चात् ही आठ मध्यम कषायों (अप्रत्याख्यानावरण-चतुष्क एवं प्रत्याख्यानावरणचतुष्क) का क्षय करता है। पुनः नपुंसकवेद, स्त्रीवेद, हास्यादि छह नोकषाय और पुरुषवेद का क्षय करता है। तदनन्तर संज्वलनक्रोध आदि चार कषायों का क्षय करता है।" (देखिये, जयधवला/अनुच्छेद ३१६ / क.पा./ भाग १६/पृ.१३९-१४०)।
संछुहदि पुरिसवेदे इत्थीवेदं णवंसयं चेव। सत्तेण णोकसाये णियमा कोहम्हि संछुहदि॥ १३८॥
चारित्रमोह-क्षपणाधिकार / क.पा./भा.१४ । अनुवाद-"(चारित्रमोह का क्षपण करनेवाला जीव) स्त्रीवेद और नपुंसक वेद का नियम से पुरुषवेद में संक्रमण करता है। तथा पुरुषवेद और हास्यादि छह, इन सात नोकषायों का नियम से संज्वलन क्रोध में संक्रमण करता है।"
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