SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 774
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०१२ / प्र०१ "गुणस्थानसिद्धान्त के विकास की दृष्टि से यह मानना होगा कि आर्यसक्षु और नागहस्ती कर्मप्रकृतियों के विशिष्ट ज्ञाता थे, वे कसायपाहुड के वर्तमान स्वरूप के प्रस्तोता नहीं थे। मात्र यही माना जा सकता है कि कसायपाहुड की रचना का आधार उनकी कर्मसिद्धान्त-सम्बन्धी अवधारणाएँ हैं, क्योंकि आर्यमंक्षु और नागहस्ती का काल ई० सन् की दूसरी शताब्दी है।" (पृ.११२)। यहाँ प्रश्न उठता है कि यदि कसायपाहुड की रचना आर्यमंक्षु और नागहस्ती की कर्मसिद्धान्तीय अवधारणाओं के आधार पर हुई है, तो उसका रचयिता कौन है? कसायपाहुड का वर्तमान स्वरूप गुणधर और आचार्यपरम्परा से आर्यमंक्षु और नागहस्ती ने प्रस्तुत नहीं किया, तो किसने किया? उक्त यापनीयपक्षी विद्वान् इस प्रश्न को अनुत्तरित छोड़ देते हैं। किन्तु , आगे चलकर वे पुनः गुणधर, आर्यमंक्षु और नागहस्ती को कसायपाहुड का कर्ता-प्रस्तोता मानने के लिए तैयार हो जाते हैं। उपर्युक्त वक्तव्य के तुरन्त बाद वे अपना दूसरा वक्तव्य इस प्रकार देते हैं-"यदि हम प्रज्ञापना के कर्ता आर्यश्याम के बाद नन्दीसूत्र-स्थविरावली में उल्लिखित स्वाति को तत्त्वार्थ के कर्ता उमास्वाति माने अथवा उमास्वाति का काल कम से कम ईसा की प्रथम शताब्दी मानें, तब ही कसायपाहुड के कर्ता और प्रस्तोता के रूप में गुणधर, आर्यमंक्षु और नागहस्ती को स्वीकार किया जा सकता है।" (पृ.११२-११३)। इस प्रकार यापनीयपक्षी विद्वान् के ग्रन्थ का कसायपाहुड-प्रकरण पूर्वापरविरोधी मतों से भरा पड़ा है, जो इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने कसायपाहुड को यापनीयपरम्परा या उसकी मातृपरम्परा का ग्रन्थ सिद्ध करने के लिए अन्धकार में तीर चलाने की कोशिश की है। हम देखते हैं कि प्रमाणों के अभाव में केवल कपोलकल्पनाओं के आधार पर कसायपाहुड को यापनीयपरम्परा का अथवा श्वेताम्बर-यापनीय-मातृपरम्परा का ग्रन्थ सिद्ध करने की चेष्टा में मान्य विद्वान् को अपने मत में निरन्तर परिवर्तन करते रहना पड़ा है १. पहले उन्होंने कसायपाहुड को यापनीयपरम्परा का ग्रन्थ घोषित किया था। २. फिर इससे इनकार कर दिया और उसे आर्यमंक्षु और नागहस्ती की उत्तरभारतीय सचेलाचेल-निर्ग्रन्थ-श्वेताम्बर-यापनीय-मातृपरम्परा में निर्मित बतलाया। ३. पश्चात् इसे भी अस्वीकार कर दिया और मौन हो गये। फिर न यह बतलाया कि कसायपाहुड की रचना किस परम्परा में हुई, और न यह कि उसका कर्ता कौन है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy