SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अ०८ / प्र० २ कुन्दकुन्द के प्रथमतः भट्टारक होने की कथा मनगढन्त / २१ पट्टधर बतलाया है। इस प्रकार जहाँ इण्डियन - ऐण्टिक्वेरी पट्टावली में धर्मचन्द्र - द्वितीय (क्र.८८) से लेकर महेन्द्रकीर्ति - द्वितीय ( क्र. १०२) तक चित्तौड़ में पन्द्रह पट्टधर दर्शाये गये हैं, वहाँ डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री एवं आचार्य हस्तीमल जी ने प्रभाचन्द्र (क्र.८७) से लेकर महेन्द्रकीर्ति (क्र.१०२) तक सोलह बतलाये हैं । १०. इण्डियन - ऐण्टिक्वेरी पट्टावली में नागौर में रत्नकीर्ति - तृतीय (क्र.८८ ) से विशालकीर्ति (क्र.९१) तक चार पट्टधर, तत्पश्चात् भुवनभूषण (क्र. १०५ ) से भुवनकीर्ति - द्वितीय (क्र.१०८) तक पुन: चार पट्टधर वर्णित हैं। और क्र. ९१ के Remarks में उल्लेख किया गया है कि पाण्डुलिपि A क्र. ९१ के बाद से क्र. १०५ के पूर्व तक पुनः नष्ट हो गई है। प्रो० हार्नले ने The Indian Antiquary (Vol. XX) के पृ. ३४१ पर भी लिखा है “MS. A, unfortunately, is defective in two places. The pontificates, Nos. 66-78 and Nos. 92-104 (both inclusive), are missing. The first lacuna (Nos. 66-78) is, in the following table, filled up from MS. B3, but the second lacuna (Nos. 92-104) could not be supplied from that source, as the two manuscripts begin to diverge with Nos. 88." (Foot Note 3) "As MS. B only gives the dates of accession, I have filled in the particulars, relating to the length of the different periods of the lives, from another paṭṭāvalī in my possession which I hope to publish hereafter." (Ibid., p. 341). अनुवाद – “ दुर्भाग्य से पाण्डुलिपि A दो स्थानों पर त्रुटिपूर्ण है। क्र. ६६-७८ और क्र. ९२ - १०४ तक पट्टधरों के नाम अविद्यमान हैं। इनमें से पहले रिक्तस्थान (क्र.६६-७८) तो पाण्डुलिपि B से भर दिये गये हैं, किन्तु दूसरे रिक्त स्थान (क्र. ९२ - १०४) उक्त स्रोत से नहीं भरे जा सके, क्योंकि दोनों पाण्डुलिपियों में क्रमांक ८८ से भिन्न-भिन्न स्थानों के पट्टधरों की नामावलियाँ शुरू हो जाती हैं (अर्थात् पाण्डुलिपि A में क्र. ८८ से केवल नागौर के पट्टधरों के नाम हैं और पाण्डुलिपि B में केवल चित्तौड़ के ) । " 44 अनुवाद (Foot Note 3 ) - 'चूँकि पाण्डुलिपि B में केवल पट्टारोहण की तिथियों का वर्णन है, इसलिए मैंने जीवन की विभिन्न कालावधियों की दीर्घता से सम्बन्धित तथ्य एक अन्य पट्टावली से उपलब्ध किये हैं, जो मेरे पास है। उसे मैं इसके बाद प्रकाशित करने की सोच रहा हूँ। " निष्कर्ष यह है कि इण्डियन - ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली में नागौरपट्ट के केवल आठ पट्टधर ही वर्णित हैं, जब कि डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री और उनका अनुसरण करनेवाले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy