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२० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०८ / प्र० २
६. इण्डियन - ऐण्टिक्वेरी पट्टावली में क्र. ५३ (वृषभनन्दी, पीटर्सन के अनुसार ब्रह्मनन्दी) से क्र. ६३ (गंगकीर्ति) तक ग्यारह को वारा का पट्टधर दर्शाया गया है, जब कि डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री और आचार्य हस्तीमल जी ने क्रमांक ६४ के सिंहकीर्ति को भी वारा के पट्टधरों में शामिल किया है, जो इण्डियन - ऐण्टिक्वेरी - पट्टावली में ग्वालियर के पट्टधर कहे गये हैं, तथा इन दोनों ने वृषभनन्दी के स्थान में ब्रह्मनन्दी का उल्लेख किया है। यह कथन भी C पट्टावली का अनुसरण करता है। उसमें कहा गया है - " बहुरि ता के पीछें वृषभनन्दि आदि सिंहकीर्ति अन्त ताँई पट्ट वारह १२ वा विषै भए ॥ १२ ॥ " (दि इण्डियन ऐटिक्वेरी, Vol. XXI, पृ. ६९ ) ।
७. इण्डियन-ऐण्टिवेरी - पट्टावली में क्र. ६५ (हेमकीर्ति) से क्र. ७७ (अभयकीर्ति) तक तेरह आचार्य भी ग्वालियर के पट्टधर वर्णित किये गये हैं, किन्तु डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री एवं आचार्य हस्तीमल जी ने इनमें क्र. ७८ के वसन्तकीर्ति को भी सम्मिलित किया है, जब कि इण्डियन - ऐण्टिक्वेरी पट्टावली में ये अजमेर के पट्टधर बतलाये गये हैं।
८. इण्डियन - ऐण्टिक्वेरी पट्टावली में क्र. ७९ ( प्रक्षातकीर्ति = प्रख्यातकीर्ति, देखिए Remarks) से क्र. ८३ ( प्रभाचन्द्र - द्वितीय) तक पाँच अजमेर के पट्टधर कहे गये हैं। डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री एवं आचार्य हस्तीमल जी ने भी इन्हें अजमेर का पट्टधर बतलाया है।
९. इण्डियन - ऐण्टिक्वेरी पट्टावली में क्र. ८४ (पद्मनन्दी) से क्र. ८७ (जिनचन्द्रद्वितीय) तक चार दिल्ली के पट्टधर उल्लिखित हैं। इनमें प्रभाचन्द्र - तृतीय को क्र. ८६ पर तथा जिनचन्द्र- द्वितीय को क्र. ८७ पर दर्शाया गया है। किन्तु B पट्टावली तथा पीटर्सन की सूची में जिनचन्द्र (वि० सं० १५०७) को पहले तथा प्रभाचन्द्र (वि० सं० १५७१) को तदनन्तर रखा गया है । ( S. No. 86, Remarks)।
इण्डियन - एण्टिक्वेरी-पट्टावली के अनुसार जिनचन्द्र - द्वितीय (क्र. ८७) चित्तौड़ के पट्टधर थे और उनके समय (वि० सं० १५७२ ) में यह पट्ट चित्तौड़पट्ट और नागौरपट्ट, इन दो भागों में विभाजित हो गया । किन्तु जिनचन्द्र - द्वितीय की मृत्यु के बाद ही वि० सं० १५१८ में दोनों स्थानों में स्वतन्त्र पट्टाधर नियुक्त किये गये। (S.No. 87, Remarks, F.N.64)।
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डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री एवं आचार्य हस्तीमल जी ने इण्डियन - ऐण्टिक्वेरीपट्टावली में दर्शाये क्रम के विपरीत पाण्डुलिपि B (S. No. 86, Remarks) का अनुसरण करते हुए जिनचन्द्र (द्वितीय) को क्र. ८६ पर और प्रभाचन्द्र (तृतीय) को क्र. ८७ पर रखा है, तथा तदनुसार जिनचन्द्र को दिल्ली का और प्रभाचन्द्र को चित्तौड़ का
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