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________________ अ०८/ प्र०२ कुन्दकुन्द के प्रथमतः भट्टारक होने की कथा मनगढन्त / १९ की सूची में उल्लिखित बतलाया है। शास्त्री जी ने क्र. १७ पर 'नेमिचन्द्र' के स्थान पर 'नेमचन्द्र', क्र. ४२ पर हरिचन्द्र की जगह हरिनन्दी, क्र. ७१ पर पद्मकीर्ति के स्थान पर पद्म, तथा क्र. ८० पर शान्तिकीर्ति के बदले शुभकीर्ति लिखा है। शास्त्री जी का अनुकरण करने के कारण आचार्य हस्तीमल जी द्वारा उद्धृत पट्टावली में भी ये भिन्नताएँ उपलब्ध होती हैं। ३. इण्डियन-ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली में क्र. २६ के अन्तिम स्तम्भ में 'मालवा में स्थित भद्दलपुर' (Bhaddalpur in Malwa) लिखा हुआ है। डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री ने उसके स्थान में 'दक्षिणदेशस्थ भट्टिलपुर' तथा आचार्य हस्तीमल जी ने 'दक्षिणदेशस्थ भद्दिलपुर' लिखा है। 'दि इण्डिन ऐण्टिक्वेरी, Vol. XXI (मार्च १८९२/ पृ.६९) में उद्धृत C पट्टावली में भी भद्दलपुर को भद्दलपुरी कहते हुए दक्षिणदेशस्थ बतलाया गया है। यथा- 'ता के पीछे भद्रबाहु सौं लेर मेरुकीर्ति ताँई पट्ट छव्वीस पर्यन्त दक्षिणदेश विषै भद्दलपुरी मैं भए॥ २६॥" ४. इण्डियन-ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली में क्र. २७ (महाकीर्ति) से लेकर क्र. ५१ तक २५ पट्टधरों को 'उजैन' (उज्जयिनी) का पट्टधर बतलाया गया है, जब कि डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री ने और उनके अनुसार आचार्य हस्तीमल जी ने क्र. २७ से क्र.४४ (माघचन्द्र-प्रथम) तक अठारह को उज्जयिनी का, क्र. ४५ (लक्ष्मीचन्द) से क्र. ४८ (लोकचन्द्र-द्वितीय) तक चार को चन्देरी (बुन्देलखण्ड) का और क्र. ४९ (श्रुतकीर्ति) से क्र. ५१ (महीचन्द्र-द्वितीय, पीटर्सन के अनुसार महाचन्द्र) तक तीन को भेलसा (भूपाल, सी.पी.) का (जो वर्तमान में 'विदिशा' नाम से प्रसिद्ध है) पट्टधर दर्शाया है। यह C पट्टावली के निम्नलिखित वर्णन पर आधारित है- "बहुरि महाकीर्ति आदि लेर महीचन्द्रान्त ताँई छव्वीस पट्ट मालवा विषै। ता मैं अठारह १८ उज्जैनी मैं भये। चन्देरी के विष ४ च्यार भए। भेल मैं ३ तीन भए। कुण्डलपुर एक भए १॥ यह सर्व छव्वीस २६ भए।" (दि इण्डियन ऐण्टिक्वेरी, Vol.XXI, पृ. ६९)। यहाँ 'महीचन्द्रान्त' के स्थान में 'माघचन्द्रान्त' होना चाहिए था, क्योंकि प्रो. हार्नले द्वारा निर्मित तालिका C में माघचन्द्र II ही क्र. ५२ पर दर्शाये गये हैं। (वही / पृ.७६)। अर्थात् उनको मिलाकर ही छब्बीस पट्टधर मालवा में होते हैं, यद्यपि चन्देरी और कुण्डलपुर बुन्देलखण्ड में आते हैं। ५. इण्डियन-ऐण्टिक्वेरी-पट्टावली में क्र. ५२ के माघचन्द्र-द्वितीय को वारा का पट्टधर कहा गया है, किन्तु डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री एवं आचार्य हस्तीमल जी ने C पट्टावली के आधार पर उनको कुण्डलपुर (दमोह) का पट्टधर लिखा है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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