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________________ १८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ २.२. स्तम्भों ( कालमों) में प्रयुक्त संकेताक्षरों का अभिप्राय इस तालिका के तीसरे स्तम्भ ( Sarivat) में जो संकेताक्षर प्रयुक्त किये गये `हैं, उनका अभिप्राय इस प्रकार है - Samvat = विक्रमसंवत्, Ch.= चैत्र, S. = सुदि, V. = वदि, Ph. = फागुन, (फाल्गुन), A or A. = आसोज या असा (अश्वयुज या आश्विन), P.= पोस, ( पोषध) अर्थात् पौष, K. = काती (कार्तिक), J.= जेष्ठ (ज्येष्ठ), As.= असाढ़ (आषाढ़), Bh. = भादवा (भाद्रपद), M. = माह (माघ), Ś. = श्रावण, Mr.= मार्गसिर (मार्गशीर्ष), V. = वैसाख (वैशाख) । इसी प्रकार क्रमांक ६ (उमास्वामी) के अन्तिम स्तम्भ ( Remarks) में कोष्ठक के भीतर जो ( P. 5 Umāsvati) लिखा हुआ है, वहाँ P = अक्षर प्रोफेसर पीटर्सन की सूची का सूचक है । (The Indian Antiquary, Vol. XX, p. 344)। २.३. आ. हस्तीमल जी - उद्धृत पट्टावली में इण्डि. ऐण्टि-पट्टावली से कुछ भिन्नता प्रो० हार्नले ने A और B पट्टावलियों के आधार पर पट्टधरों की जो अँगरेजी में तालिका तैयार कर 'दि इण्डियन ऐण्टिक्वेरी' (Vol. XXX, pp. 351-355) में प्रकाशित की थी, उसे डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री ने अनुवादित कर अपने ग्रन्थ 'तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा' (खण्ड ४ / पृ. ४४१-४४३) में उद्धृत किया है। आचार्य हस्तीमल जी ने उसे यथावत् अपने ग्रन्थ 'जैन धर्म का मौलिक इतिहास' (भाग ३/ पृ.१३६ - १३९) में ग्रहण कर लिया है। डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री ने उक्त तालिका का पूर्णत: अनुवाद नहीं किया और कुछ अंश अन्य स्रोतों से ग्रहण कर उसमें जोड़ दिये हैं, जिससे वह इण्डियन ऐण्टिक्वेरी पट्टावली से कुछ भिन्न हो गयी है। वही भिन्नता आचार्य हस्तीमल जी द्वारा उद्धृत पट्टावली में दृष्टिगोचर होती है । यथा अ०८ / प्र० २ १. इण्डियन- ऐण्टिक्वेरी - पट्टावली में Serial Number से लेकर Remarks ९ मूल स्तम्भ हैं। इनमें से डॉ. नेमिचन्द्र जी शास्त्री ने Serial Number, Names एवं Sarvat के अतिरिक्त शेष समस्त स्तम्भों का अनुवाद छोड़ दिया है। Dates of accession नामक तीसरे स्तम्भ से केवल विक्रमसंवत् के वर्ष का उल्लेख किया है, संवत् शब्द का नहीं, तथा Christian (B.C. /A.D.) सन् का भी उल्लेख छोड़ दिया है। फलस्वरूप यही न्यूनताएँ आचार्य हस्तीमल जी द्वारा उद्धृत पट्टावली में मिलती हैं । २. डॉ० नेमिचन्द्र जी शास्त्री ने क्र. ११ पर 'पूज्यपाद' के स्थान में 'जयनन्दी' नाम का उल्लेख किया है, जो The Indian Antiquary ( Vol. XXI ) में पृष्ठ ७४ पर मुद्रित C पट्टावली में मिलता है। इसी प्रकार क्र. १९ पर 'हरिनन्दी' की जगह 'सिंहनन्दी' नाम रखा है, जिसे प्रो० हार्नले ने Remarks के कॉलम में पीटर्सन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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