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अ०११/प्र०६
षट्खण्डागम /६७७
मानुषियों में नहीं होते। इस कथन से इतना निश्चित होता है कि अपर्याप्त मानुषियों के तीनों सम्यक्त्वों में से कोई-सा एक भी सम्यक्त्व नहीं होता है। परन्तु आगे और कहते हैं कि क्षायिकसम्यक्त्व भाववेद से ही होता है। इससे स्पष्ट होता है कि पहले वाक्य का सम्बन्ध द्रव्यमानुषियों और भावमानुषियों दोनों के लिए है। परन्तु उससे द्रव्यमानुषियों के भी क्षायिकसम्यक्त्व पाया जाना सिद्ध होता है, अतः आगे के वाक्य द्वारा भावमानुषियों के ही वह क्षायिकसम्यक्त्व होता है, ऐसा कहकर द्रव्यमानुषियों के क्षायिकसम्यक्त्व के होने का निषेध कर देते हैं। अतः निश्चित यह होता है कि पर्याप्त भावमानुषियों के तीनों सम्यक्त्व होते हैं, अपर्याप्तकों के कोई सा भी सम्यक्त्व नहीं होता है। द्रव्यमानुषियों के दो ही सम्यक्त्व होते हैं, परन्तु अपर्याप्तकों के न होकर पर्याप्तकों के ही होते हैं। जब दोनों ही अपर्याप्त मानुषियों में तीनों में से कोई-सा एक भी सम्यक्त्व नहीं होता है, तब यह कैसे माना जा सकता है कि भावमानुषियों में सम्यग्दृष्टि उत्पन्न होता है और केवल द्रव्यमानुषियों में ही उत्पन्न नहीं होता है। अतः 'स्त्रीषु' पद का अर्थ केवल द्रव्यस्त्रियाँ नहीं है, किन्तु स्त्रीवेदोदययुक्त स्त्री सामान्य है, जिसमें दोनों प्रकार की स्त्रियाँ अन्तर्भूत हैं।
सम्यग्दर्शनशुद्धा नारक-तिर्यङ्-नपुंसक-स्त्रीत्वानि। दुष्कुलविकृताल्पायुरिद्रतां च व्रजन्ति नाप्यवतिकाः॥ १/३५॥
रत्नकरण्डश्रावकाचार। हेट्ठिम-छप्पुढवीणं जोइसि-वण-भवण-सव्वइत्थीणं। पुण्णिदरे ण हि सम्मो ण सासणो णारयापुण्णे॥ १२८॥
___ गोम्मटसार / जीवकाण्ड। "इत्यादि प्रवचनों में आये हुए स्त्रीपदों का अर्थ भी दोनों प्रकार की स्त्रियाँ हैं, न कि केवल द्रव्यस्त्रियाँ।
"धवलाकार भगवद्वीरसेन स्वामी ने इस 'स्त्रीषु' पद के साथ 'द्रव्य' पद नहीं जोड़ा है। 'द्रव्य' पद का प्रयोग किये बिना भी यहाँ पर 'स्त्रीषु' पद का वाच्यार्थ द्रव्यस्त्रीषु हो जाता है, तो 'अस्मादेवार्षाद् द्रव्यस्त्रीणां निवृत्तिः सिद्धयेत्' इस वाक्य में स्त्रीणां पद के साथ द्रव्य पद क्यों जोड़ा? इससे मालूम पड़ता है 'स्त्रीषु' पद का अर्थ केवल द्रव्यस्त्रियाँ नहीं है, इसीलिए सूरीश्वर ने आगे के वाक्य में 'द्रव्य' पद लगाया है।" (षट्खण्डागम-रहस्योद्घाटन / पृ.२०९-२११)।
इस तरह माननीय पं० पन्नालाल जी सोनी ने भी ९३ वें सूत्र में आये मणुसिणी शब्द को द्रव्यस्त्री और भावस्त्री दोनों का वाचक माना है।
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