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६७० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ० ११ / प्र०५ में तो अब समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता भी मिल गयी है। (देखिए, पूर्वशीर्षक १०)। इन तथ्यों से वेदवैषम्य की सत्यता सिद्ध होती है।
इस तरह पाल्यकीर्ति शाकटायन ने वेदवैषम्य को अप्रामाणिक सिद्ध करने की जो चेष्टा की है, वह श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों में मान्य आगमों के विरुद्ध है तथा लोक में दृश्यमान प्रत्यक्ष प्रमाणों के भी प्रतिकूल है।
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