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अ०११ / प्र० ४
षट्खण्डागम / ६५७
बाँधने का कथन भावस्त्री (शरीर से पुरुष और भाव से स्त्री) के ही विषय में किया गया है। यह षट्खण्डागम में वेदवैषम्य का एक अन्य उदाहरण है।
धवलाटीका में आचार्य वीरसेन ने भी यह बात स्पष्ट की है। वे कहते हैं
" एत्थ भाववेदस्स गहणमण्णहा दव्वित्थिवेदेण वि णेरइयाणमुक्कस्साउअस्स बंधप्पसंगादो। ण च तेण सह तस्स बंधो, 'आ पंचमी त्ति सीहा इत्थीओ जंति छट्ठपुढवि त्ति' एदेण सुत्तेण सह विरोहादो ।" (ष. खं/ पु.११ / ४,२,६,१२ / पृ.११४)।
अनुवाद –“यहाँ (उपर्युक्त 'अण्णदरस्स' इत्यादि १२ वें सूत्र में ) भाववेद का ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि द्रव्यवेद का ग्रहण करने पर द्रव्यस्त्रीवेद के साथ भी नारकियों की उत्कृष्ट आयु के बन्ध का प्रसंग आता है । परन्तु उसके साथ नारकियों की उत्कृष्ट आयु का बन्ध होता नहीं है। क्योंकि 'पाँचवीं पृथ्वी तक सिंह और छठी पृथ्वी तक स्त्रियाँ जाती हैं' इस सूत्र के साथ विरोध आता है। " १०.१२. तीनों परम्पराओं में द्रव्यस्त्री को उत्कृष्ट देवायु के बन्ध का निषेध
द्रव्यस्त्री उत्कृष्ट देवायु का भी बन्ध नहीं कर सकती, क्योंकि उसके पास न तो वज्रवृषभनाराचसंहनन होता है, न ही वह निर्ग्रन्थलिंग धारण कर सकती है। दिगम्बरसिद्धान्त के अनुसार वज्रवृषभनाराच संहननवाला (गो.क. / गा. २९-३०) तथा निर्ग्रन्थलिंगधारी पुरुष पाँच अनुत्तर विमानों के देवों की उत्कृष्ट आयु बाँध सकता है । १२७ श्वेताम्बरीय ग्रन्थों से भी यही सिद्ध होता है। श्वेताम्बरीय ग्रन्थ प्रकरणरत्नाकर में कहा गया है
दो पढमपुढविगमणं छेवट्टे कीलियाई इक्कक्कपुढवि बुड्डी आइतिलेस्साउ
अनुवाद - "छठे (असंप्राप्तासृपाटिका) संहननवाला जीव पहले दूसरे नरक तक जा सकता है। दूसरे संहननवाला तीसरे नरक तक, तीसरे संहननवाला चौथे नरक तक, चौथे संहननवाला पाँचवें नरक तक, पाँचवें संहननवाला छठे नरक तक और वज्रवृषभनाराचसंहननवाला सातवें नरक तक जा सकता है।"
१२७. तत्तो परं तु णियमा तवदंसणणाणचरणजुत्ताणं ।
और स्त्री सातवें नरक में जाती नहीं है, छठे नरक तक ही जाती है। यह भी प्रकरणरत्नाकर का कथन है
णिग्गंथाणुववादो जाव दु सव्वट्टसिद्धित्ति ॥ ११७८ ॥ मूलाचार |
१२८. प्रकरणरत्नाकार/ भाग ४ / संग्रहणीसूत्र / गाथा २३६ ।
संघयणे।
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नरएसुं ॥१२८
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