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अ०११/प्र०४
षट्खण्डागम / ६४९
१०.५. षट्खण्डागम में मणुसिणी को तीर्थंकरप्रकृति के बन्ध का कथन
षट्खण्डागम के 'बन्धस्वामित्वविचय' नामक तृतीय खण्ड के निम्नलिखित सूत्र में मनुष्यनी को तीर्थंकरप्रकृति का बन्धक बतलाया गया है
"मणुस्सगदीए मणुस-मणुसपजत्त-मणुसिणीसु ओघं णेयव्वं जाव तित्थयरेत्ति।" (ष.खं./पु.८/३,७५)।
अनुवाद-"मनुष्यगति में मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त एवं मनुष्यिनियों में (खण्ड ३ के सूत्र क्रमाक ५ में वर्णित) ज्ञानावरणादि प्रकृतियों से लेकर (खण्ड ३ के ३८वें सूत्र में वर्णित) तीर्थंकरप्रकृति तक के बन्ध का कथन ओघ के समान जानना चाहिए।"
धवलाकार ने स्त्रीवेदियों को क्षपकश्रेणी में तीर्थंकरप्रकृति के बन्ध का अभाव बतलाया है, क्योंकि तीर्थंकरप्रकृति का बन्ध करनेवाला स्त्रीवेद के उदय के साथ अपकश्रेणी पर चढ़ने में समर्थ नहीं होता।१४ वह उपशमश्रेणी पर आरुढ़ हो सकता है।१४ १०.६. तीनों परम्पराओं में द्रव्यस्त्री के तीर्थंकर होने का निषेध
यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि दिगम्बर-आम्नाय में द्रव्यस्त्री को मुक्ति का अधिकारी नहीं माना गया है, अतः उसको तीर्थंकरप्रकृति का बन्ध होना भी मान्य नहीं है। धवलाकार वीरसेन स्वामी ने कहा है___ "तित्थयरबंधस्स मणुसा चेव सामी, अण्णस्थित्थिवेदोदइल्लाणं तित्थयरस्स बंधाभावादो। अपुव्वकरणउवसामएसु तित्थयरस्स बंधो, ण क्खवएसू, इत्थिवेदोदयेण तित्थयरकम्मं बंधमाणाणं खवगसेडिसमारोहणाभावादो।" (धवला/ ष.खं/ पु.८/३,१७७/पृ.२६१)।
__ अनुवाद-"तीर्थंकरप्रकृति के बन्ध का स्वामी मनुष्य ही है, क्योंकि अन्य गतियों के स्त्रीवेदोदययुक्त जीवों में तीर्थंकरप्रकृति के बन्ध का अभाव है। अपूर्वकरणउपशामकों में तीर्थंकरप्रकृति का बन्ध होता है, क्षपकों में नहीं, क्योंकि स्त्रीवेद के उदय के साथ तीर्थंकरकर्म को बाँधनेवाले जीवों में क्षपकश्रेणी-आरोहण का अभाव है।" (अनुवादक : पं. फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री)।
११४.क- "खवगसेडीए तित्थयरस्स णत्थि बंधो, इत्थिवेदेण सह खवगसेडिसमारोहणे संभवा
भावादो।" धवला / ष.खं/ पु.८/ ३,७५ / पृ.१३४। ख-"अपुव्वकरणउवसामएसु तित्थयरस्स बंधो, ण क्खवएसू , इत्थिवेदोदयेण तित्थयरकम्म
बंधमाणाणं खवगसेडिसमारोहणाभावादो।" धवला / ष.खं/ पु.८/३, १७७ / पृ.२६१ ।
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