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१२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०८/प्र०२ क्रियोद्धारकों-धर्मक्रान्ति के सूत्रधारों ने किया, ठीक उसी प्रकार मुनिपुंगव कुन्दकुन्द ने भी अपने गुरु और संघ की मान्यताओं के विरुद्ध क्रान्ति का शंखनाद फूंका। उस धर्मक्रान्ति में, उस क्रियोद्धार में कुन्दकुन्द को पर्याप्त सफलता मिली। भूली-बिसरी प्राचीन मान्यताओं की उन्होंने अपेक्षाकृत कड़ी कट्टरता के साथ पुनः संस्थापना की। स्वयं द्वारा की गई धर्मक्रान्ति की परिपुष्टि के लिये उन्होंने अनेक सैद्धान्तिक ग्रन्थों की रचनाएँ की, जो आज भी दिगम्बरपरम्परा में आगम-तुल्य मान्य हैं। (वही । पृ.१४०)।
"अपने गुरु से, अपने प्रगुरु द्वारा संस्थापित भट्टारकसंप्रदाय से पृथक् हो जाने के कारण ही आचार्य कुन्दकुन्द ने कहीं अपने गुरु का नामोल्लेख तक नहीं किया है। वर्तमान में दिगम्बरपरम्परा की मान्यातानुसार आचार्य कुन्दकुन्द की जितनी कृतियाँ उपलब्ध हैं, उनमें से किसी एक में भी आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने गुरु का नामोल्लेख तक नहीं किया है।" (जै. ध. मौ. इ. / भा. ३ / पृ.१४० - १४१)।
"जिस प्रकार आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने किसी भी ग्रंथ में अपने गुरु का, साक्षात् गुरु का अथवा विद्यागुरु का नामोल्लेख नहीं किया, उसी प्रकार भट्टारकपरम्परा के आचार्य वीरसेन (धवलाकार, वि० सं० ८१६, ८३०), जिनसेन (जयधवलाकार, वि० सं० ८३७), गुणभद्र, लोकसेन (उत्तरपुराणकार, वि० सं० ९५५) ने, हरिवंशपुराणकार आचार्य जिनसेन (विक्रम की नौवीं शताब्दी) ने तथा तिलोयपण्णत्तिकार यतिवृषभ (वि० सं० ५३५) ने अपने ग्रन्थों में आचार्य कुन्दकुन्द का कहीं नामोल्लेख तक नहीं किया है। इससे यही अनुमान किया जाता है कि आचार्य कुन्दकुन्द भट्टारकपरम्परा से पृथक् हुए थे अथवा पृथक् किये गये थे।"(वही / पृ.१४१)।
आचार्य हस्तीमल जी का यह निष्कर्ष युक्ति और प्रमाण के विरुद्ध है। यह उद्धृत पट्टावली में निर्दिष्ट तथ्यों से ही सिद्ध होता है। इसका प्ररूपण आगे किया जायेगा। पहले प्रमाण के लिए उपर्युक्त 'दि इण्डियन एण्टिक्वेरी' में प्रकाशित पट्टावली के मूल अँगरेजी पाठ का अवलोकन और उसके स्रोत की जानकारी प्राप्त कर लेना जरूरी है।
इण्डियन-एण्टिक्वेरी-पट्टावली का मूल अंगरेजी पाठ 'दि इण्डियन ऐण्टिक्वेरी' एक शोधपत्रिका है। प्रो० ए० एफ० रूडाल्फ हार्नले पी-एच० डी० ने श्री सेसिल बेण्डल द्वारा राजपूताना से लायी गयीं मूलसंघ के कुन्दकुन्दान्वय, सरस्वतीगच्छ, नन्दिसंघ, बलात्कारगण की दो पट्टावलियों ('A' और 'B') के आधार पर पट्टधरों के नामादि की जो क्रमबद्ध तालिका अँगरेजी में तैयार की
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