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अ०८ / प्र० २ कुन्दकुन्द के प्रथमतः भट्टारक होने की कथा मनगढन्त /१३ थी, वह इस शोधपत्रिका के Volume XX (October 1891) में 'Tables of the Kundakunda line, or the Sarasvati Gachchha, called the Nandi Āmnāya, or Balatkar Gana, of the Mula Sangha. (From MSS. A and B.)' शीर्षक से पृष्ठ 351-355 पर प्रकाशित है। उसका क्रमांक १ से २६ तक का अंश प्रकृत में उपयोगी होने के कारण अगले पृष्ठों पर उद्धृत किया जा रहा है। शेष अंश इसी अध्याय के अन्त में विस्तृत सन्दर्भ में द्रष्टव्य है। पट्टावली के अन्तिम स्तम्भ में प्रो० हार्नले के द्वारा की गयी टिप्पणियाँ हैं।
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