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अ०११/प्र०४
षट्खण्डागम / ६०१ के अनुवाद में प्रस्तुत ग्रन्थलेखक ने दिया है। 'दसणपाहुड की सभी प्रतियों में उपर्युक्त (२४ वीं) गाथा में अवग्रहचिह्न का प्रयोग कर पाठ संशोधित किया जाना चाहिए।
४.१.२. चतुर्जेनाभास-गृहीत नग्नवेश भी जिनलिंगाभास-जैनसम्प्रदाय में पाँच जैनाभास-मुनिसंघ हुए हैं : गोपुच्छक ( गोपुच्छ के बालों की पिच्छी रखनेवाला काष्ठासंघ), श्वेताम्बर, द्राविड़, यापनीय और निष्पिच्छ (पिच्छी न रखनेवाला माथुरसंघ)। इनका वर्णन इन्द्रनन्दी ने नीतिसार के निम्नलिखित श्लोक में किया है
गोपुच्छकः श्वेतवासा द्राविडो यापनीयकः।
निष्पिच्छश्चेति पञ्चैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः॥ १०॥ इनमें से श्वेताम्बरसंघ को छोड़कर शेष चार मुनिसंघ जिनलिंगधारी थे। चूँकि इनके आचार-विचार मूलसंघ के आचार-विचार से काफी भिन्न थे, अतः इन्हें जैनाभास कहा गया है। इसलिए इनका जिनलिंग भी जिनलिंगाभास था। श्रुतसागर सूरि ने कहा है कि ये जैनाभास आहारदान आदि के भी योग्य नहीं हैं, मोक्ष के योग्य कैसे हो सकते हैं?-"ते जैनाभासा आहारदानादिकेऽपि योग्या न भवन्ति, कथं मोक्षस्य योग्या भवन्ति?" (दंसणपाहुड / टीका / गा.११)।
इससे भी सिद्ध है कि जिनागम में सम्यक्त्व-संयम-विहीन पुरुषों का नग्नवेश जिनलिंग नहीं माना गया है, अपितु जिनलिंगाभास माना गया है। अतः वह पूज्य नहीं
है।
श्रुतसागर सूरि ने तो यहाँ तक कहा है कि उपर्युक्त जैनाभासों के द्वारा जो अंचलिकारहित भी नग्नमूर्ति प्रतिष्ठित की जाती है वह भी न वन्दनीय है, न पूजनीय-"या तु पञ्चजैनाभासैरञ्चलिकारहितापि नग्नमूर्तिरपि प्रतिष्ठिता सा न वन्दनीया, न चार्चनीया च।" ( बोधपाहुड / टीका /गा.१०)। तात्पर्य यह कि जिनलिंगाभासधारियों के द्वारा प्रतिष्ठित जिनप्रतिमा भी जिनप्रतिमाभास है।
४.१.३. पार्श्वस्थादि भ्रष्ट जैनमुनियों का नाग्न्यलिंग कुलिंग-भावपाहुड, भगवती-आराधना, मूलाचार आदि ग्रन्थों में मुनिधर्मविरुद्ध विविध आचरण करनेवाले भ्रष्ट जैनमुनियों को पार्श्वस्थ, कुशील, संसक्त, अवसन्न और यथाछन्द, इन पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है। (देखिये, अध्याय ८ / प्रकरण ४ / शीर्षक ३)। ये भी जैनाभास या जैनश्रमणाभास हैं, अतः इनका नाग्न्यलिंग भी जिनलिंगाभास है। पं० आशाधर जी ने अनगारधर्मामृत में इनके जिनलिंगाभास को कुलिंग संज्ञा दी है और इन्हें अवन्दनीय बतलाया है। यथा
श्रावकेणापि पितरौ गुरू राजाऽप्यसंयताः। कुलिङ्गिनः कुदेवाश्च न वन्द्याः सोऽपि संयतैः॥ ८/५२॥
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