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५७६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ० ११ / प्र०३ ख्यान, भक्तपरिज्ञा आदि प्रकीर्णक ग्रन्थों में संगृहीत हैं।२६ माननीय पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री 'जैन साहित्य का इतिहास' (भाग २) में लिखते हैं
"दिगम्बरपरम्परा में एक मूलाचार नामक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थका उल्लेख तिलोयपण्णत्ति में मिलता है और उससे उसमें कुछ गाथाएँ भी ली गई हैं, यह पहले बतला आये हैं। मूलाचार के अन्तिम प्रकरण का नाम 'पज्जत्तीसंगहणी' है। इस प्रकरण की अनेक गाथाएँ बृहत्संग्रहणी में संगृहीत हैं। कुछ गाथाएँ तो यथाक्रम पाई जाती हैं। विवरण इस प्रकार है
"जम्बूद्वीप से लेकर क्रौंचवरद्वीप पर्यन्त सोलह द्वीपों के नाम दोनों ग्रन्थों में दो गाथाओं से बतलाये गये हैं। इन दोनों गाथाओं की क्रमसंख्या मूलाचार में ३३-३४ और संग्रहणी में ८२-८३ है। दोनों में प्रायः समानता है। उसके पश्चात् मूलाचार में यह गाथा है
एवं दीवसमुद्दा दुगुणदुगुणवित्थडा असंखेजा।
एदे दु तिरियलोए सयंभुरमणोदहिं जाव॥ ३५॥ "संग्रहणी में यही गाथा थोड़े से पाठभेद को लिए हुए इस प्रकार है
एवं दीवसमुद्दा दुगुणा दुगुणा भवे असंखेजा।
भणिओ य तिरियलोए सयंभुरमणोदही जाव॥ ८५॥ "उक्त दो गाथा और उक्त गाथा के बीच में संग्रहणी में जो ८४ नम्बर की गाथा है, वह मूलाचार में आगे दी है, उसका नम्बर ३६ है। उसके पश्चात् ३८, ३९ और ४० नम्बर की गाथाएँ संग्रहणी में ८७, ८८ और ९० नम्बर पर हैं।
"इस तरह द्वीपसमुद्रों के कथनसम्बन्धी गाथाएँ दोनों संग्रहणियों में प्रायः समान हैं।
"आगे योनियों के कथनसम्बन्धी मूलाचार गाथा ५८-५९ संग्रहणी में ३५८-३५९ नम्बर पर हैं। ६० तथा ३६० नम्बर की गाथा का अर्थ समान होते हुए भी शब्दों में थोड़ा अन्तर पाया जाता है। आगे ६१-६२ तथा ३६१-३६२ गाथाएँ प्रायः समान हैं। मूलाचारकी ६२वीं गाथा के अन्तिम चरण का पाठ है-'सेसा सेसेसु जोणीसु'। और संग्रहणी की ३६२वीं गाथा के अन्तिम चरण में पाठ हैं-'सेसाए सेसगजणो य'। गोम्मटसार जीवकाण्ड में यह गाथा संग्रहणीवाले पाठ के साथ पाई जाती है।
२६. देखिये, 'भगवती-आराधना' नामक अध्याय।
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