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________________ अ०११/प्र०३ षट्खण्डागम/५६५ नन्दिसंघ की प्राकृतपट्टावली यापनीय-पट्टावली नहीं यापनीयपक्ष पूर्वोद्धृत वक्तव्य में यापनीयपक्षधर विद्वान् ने कहा है कि नन्दिसंघ की प्राकृतपट्टावली यापनीयसंघ की पट्टावली है। उसमें धरसेन के उल्लेख से यही सिद्ध होता है कि वे यापनीयसंघ से सम्बद्ध रहे हैं। (जै.ध.या.स./ पृ.९३)। दिगम्बरपक्ष उपर्युक्त पट्टावली मूलसंघीय-नन्दीसंघ की अर्थात् दिगम्बरनन्दिसंघ की ही है, यापनीयनन्दिसंघ की नहीं, क्योंकि उसमें नन्दीसंघ के साथ मूलसंघ का उल्लेख है। यथा-"श्रीमूलसङ्घप्रवरे नन्द्याम्नाये मनोहरे।" (श्लोक २, The Indian Antiquary, Vol.XX, p.344)। प्रथमशुभचन्द्रकृत नन्दिसंघ की गुर्वावली में भी कहा गया है कि मूलसंघ में नन्दीसंघ उत्पन्न हुआ था-"श्रीमूलसङ्ग्रेञ्जनि नन्दिसङ्घः।" (श्लोक २/ती. म.अ.प./ खं.४/ पृ.३९३)। यापनीय-नन्दिसंघ या यापनीय-पुन्नागवृक्षमूलगण के साथ सर्वत्र 'यापनीय' विशेषण का प्रयोग हुआ है। यथा___१. "श्रीयापनीय-नन्दिसंघ-पुन्नागवृक्षमूलगणे ---।" जै.शि.सं./मा. च/ भा.२/ कडब ले. क्र. १२४ । २. "श्रीयापनीयसंघद पुन्नागवृक्षमूलगणद ---।" जै.शि.सं./भा.ज्ञा./भा.४/ हूलि ले.क्र.१३०। यतः नन्दिसंघ की प्राकृतपट्टावली में नन्दीसंघ को मूलसंघ के ही अन्तर्गत बतलाया गया है, अतः सिद्ध है कि वह दिगम्बरसंघ की ही है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित तथ्य भी इसके गवाह हैं कि वह दिगम्बरसंघ की ही है १. उसमें जितने भी आचार्यों के नाम हैं, वे सब दिगम्बरपरम्परा के आचार्य हैं। उनमें से एक का भी नाम श्वेताम्बर-स्थविरावलियों या यापनीय-आचार्यों की सूची में नहीं मिलता। २. यापनीयपक्षधर विद्वान् बोटिक शिवभूति को यापनीयसंघ का संस्थापक मानते हैं। उसके दो प्रमुख शिष्य थे : कौण्डिन्य और कोट्टवीर। इनमें से किसी का भी नाम उक्त पट्टावली में नहीं है। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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