SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 612
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०११/प्र०२ ३.३. तत्त्वार्थसूत्र के अनेक सूत्रों की रचना का आधार षट्खण्डागम तत्त्वार्थसूत्र के निम्नलिखित सूत्रों के बीज भी श्वेताम्बरीय आगमग्रन्थों में उपलब्ध नहीं हैं। तत्त्वार्थसूत्र जैनागम समन्वय में भी इनके बीज 'नन्दिसूत्र' और 'अनुयोगद्वार' में बतलाये गये हैं। किन्तु इन दोनों ग्रन्थों की रचना पाँचवी शताब्दी ई० में हुई है। अतः ये सूत्र तत्त्वार्थसूत्र से ही इन ग्रन्थों में पहुंचे हैं। इसका स्पष्टीकरण आगे तत्त्वार्थसूत्र के अध्याय में द्रष्टव्य है। तत्त्वार्थसूत्र प्रथम-द्वितीय शताब्दी ई० की रचना है और षटखण्डागम ईसापूर्व प्रथम शताब्दी के पूर्वार्ध की। अतः स्पष्ट है कि ये सूत्र षट्खण्डागम के सूत्रों के आधार पर ही रचे गये हैं। जानकारी के लिए यहाँ इन सूत्रों के साथ षट्खण्डागम के वे सूत्र भी उद्धृत किये जा रहे हैं, जिनके आधार पर इनकी रचना हुई है तत्त्वार्थसूत्र - नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्यासः। (१/५)। षट्खण्डागम - चउव्विहो पयडिणिक्खेवो- णामपयडी, ट्ठवणपयडी, दव्वपयडी, भावपयडी चेदि। (पु.१३ / ५,५,४ / पृ.१९८)। तत्त्वार्थसूत्र - सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च। (१/८)। षट्खण्डागम - संतपरूवणा दव्वपमाणाणुगमो खेत्ताणुगमो फोसणाणुगमो कालाणुगमो अंतराणुगमो भावाणुगमो अप्पबहुगाणुगमो चेदि। (पु.१/१,१,७)। तत्त्वार्थसूत्र - मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्। (१/१३)। षट्खण्डागम - सण्णा सदी मदी चिंता चेदि। एवमाभिणिबोहियणाणावरणीयस्स कम्मस्स अण्णा परूवणा कदा होदि। ( पु.१३ /५,५,४१४२)। ४ तत्त्वार्थसूत्र - अवग्रहेहावायधारणाः। (१/१५)। षट्खण्डागम - चउव्विहं ताव ओग्गहावरणीयं ईहावरणीयं अवायावरणीयं धारणावरणीयं चेदि। (पु.१३ / ५,५,२३)। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy