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अ०१० / प्र० ८
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ५२१ द्रव्यरूप से श्रमण न बतला कर केवल भावरूप से श्रमण बतलाया है और आराधना के कर्ता शिवार्य द्रव्यरूप से भी श्रमण थे, साथ ही, युवतिजनों से परिवेष्टित रहने का उनके साथ कोई प्रसंग भी नहीं था । ऐसी हालत में शिवकुमार को शिवार्य नहीं ठहराया जा सकता और न उक्त दोनों शिवभूतियों के साथ उसका एक व्यक्तित्व ही स्थापित किया जा सकता है। स्थविरावली के शिवभूति की गुरुपरम्परा भी शिवार्य की गुरुपरम्परा से नहीं मिलती। शिवार्य ने 'आराधना' में अपने गुरुओं का नाम आर्य जिननन्दी, सर्वगुप्तगणी और आर्य मित्रनन्दी दिया है, जबकि स्थविरावली में शिवभूति को धनगिरि का शिष्य और धनगिरि को फग्गुमित्त का उत्तराधिकारी प्रकट किया है। ऐसी स्थिति में कुन्दकुन्दाचार्य को भगवती - आराधना के कर्ता शिवार्य से बाद का विद्वान् सिद्ध करने का यह सब प्रयत्न ठीक नहीं कहा जा सकता ।
इस तरह प्रो० सा० ने जिन आधारों पर, जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे सदोष जान पड़ते हैं, और इसलिये उन निष्कर्षों की बुनियाद पर जैन इतिहास के एक विलुप्त अध्याय की इमारत खड़ी करते हुए शिवार्य के उत्तराधिकारियों की जो खोज प्रस्तुत की गई है, वह कैसे निर्दोष हो सकती है? इसे पाठक स्वयं समझ सकते हैं । यही कारण है कि आप की उस सदोष खोज का प्रबल विरोध हो रहा है, जिसका एक ज्वलंत उदाहरण 'क्या नियुक्तिकार भद्रबाहु और स्वामी समन्तभद्र एक हैं?' इस शीर्षक का लेख है, जिसमें आप की इस मान्यता का प्रबल युक्तियों से खण्डन किया गया है कि श्वेताम्बर निर्युक्तिकार भद्रबाहु और आप्तमीमांसादि के कर्ता स्वामी समन्तभद्र एक हैं। ( लेख समाप्त) ।
२.१०. द्वितीय लेख
क्या नियुक्तिकार भद्रबाहु और स्वामी समन्तभद्र एक हैं ३०२
लेखक : न्यायाचार्य पं० दरबारीलाल जी जैन कोठिया
हाल में श्रीमान् प्रो० हीरालाल जी जैन, एम० ए०, अमरावती ने 'जैन इतिहास का एक विलुप्त अध्याय' नाम का निबन्ध लिखा है, जो गत जनवरी मास में बनारस में होनेवाले अखिल भारतवर्षीय प्राच्य सम्मेलन के १२ वें अधिवेशन पर अँग्रेजी में पढ़ा गया और जिसे बाद को आपने स्वयं हिन्दी में अनुवादित करके एक अलग
३०२. क — ' अनेकान्त / वर्ष ६ / किरण १०-११ जून १९४४ में प्रकाशित तथा 'दिगम्बर जैन सिद्धान्त दर्पण' (द्वितीय अंश) में पृष्ठ ६१-७२ पर उद्धृत ।
ख - माननीय कोठिया जी के इस लेख में क्रमांक २.१०.१ से लेकर क्रमांक २.१०.३ तक के शीर्षकों का प्रयोग प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक ने किया है।
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