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________________ ५१६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०१०/प्र०८ २. ८. जैन इतिहास का मनगढन्त अध्याय मान्य प्रो० हीरालाल जी ने जैन इतिहास के जिस विलुप्त-अध्याय का पुनरनुसन्धान किया है, वह वास्तव में विलुप्त नहीं था। वस्तुतः वह जैन इतिहास है ही नहीं, अपितु एक मनगढन्त इतिहास को विलुप्त कहकर जैन इतिहास का अध्याय बतलाने की कोशिश की गई है। यहाँ प्रश्न है कि उस इतिहास का आधार क्या है? किन साहित्यिक और शिलालेखीय प्रमाणों से प्रोफेसर सा० ने ये विलुप्त तथ्य प्राप्त किये हैं? उन्होंने पूर्वोद्धृत 'जैन इतिहास का एक विलुप्त अध्याय' नामक अपने लेख के "ये वक्तव्य तब तक पूर्णतः समझ में नहीं आते ---" इस अनुच्छेद में दी गयी यह जानकारी कहाँ से प्राप्त की, कि "कुन्दकुन्द आपवादिक सवस्त्र-मुनिलिंग एवं स्त्रीमुक्ति के समर्थक शिवार्य के प्रशिष्य और इसी मान्यतावाले भद्रबाहु-द्वितीय के शिष्य थे तथा कुन्दकुन्द भी आरम्भ में आपवादिक सवस्त्रमुनिलिंग से मुक्ति मानते थे, किन्तु आगे चलकर उन्होंने इसे अमान्य कर दिया?" उसी अनुच्छेद में व्यक्त यह जानकारी भी उन्हें कहाँ से मिली कि "उमास्वाति कुन्दकुन्द के समकालीन प्रतियोगी थे और वे कुन्दकुन्द के निरपवाद अचेलमार्ग से असहमत थे, फिर भी उन्होंने समझौते के लिए केवलिभुक्ति के प्रतिपादक, किन्तु सवस्त्रमुक्ति और स्त्रीमुक्ति के विषय में मौन रहनेवाले तत्त्वार्थसूत्र की रचना की, इसके बावजूद भी समझौता न हो सका, तब कुन्दकुन्द के विरोधियों को उमास्वाति के नेतृत्व में संघ छोड़ना पड़ा और उन्होंने यापनीयसंघ की स्थापना की?" ये सारी जानकारियाँ प्रो० हीरालाल जी जैन को किस ऐतिहासिक सामग्री से प्राप्त हुईं, इसका कोई उल्लेख उन्होंने अपने लेख में नहीं किया। वे कर भी नहीं सकते थे, क्योंकि किसी भी प्राचीन ग्रन्थ या शिलालेख में इन बातों का संकेत नहीं मिलता। इससे सिद्ध है कि यह इतिहास का विलुप्त अध्याय नहीं, अपितु प्रोफेसर सा० के द्वारा अपने मन से गढ़ी हुई कहानी है। इसकी पुष्टि उनके "इस ग्रन्थ को उमास्वाति ने सम्भवतः समझौते के लिए प्रस्तुत किया, किन्तु कुन्दकुन्द और उनके सहयोगियों ने सम्भवतः उसी प्रयोजन से एक संघ की बैठक करके उसे अस्वीकार कर दिया," इस प्रकार की अनिश्चय-द्योतक भाषा के प्रयोग से होती है। प्रश्न उठता है कि मुनि कल्याणविजय जी ने अपने ग्रन्थ 'श्रमण भगवान् महावीर' में एवं प्रो० हीरालाल जी ने उपर्युक्त लेखों में यह झूठा इतिहास क्यों गढ़ा? मुनि कल्याणविजय जी के विषय में तो नि:संकोच उत्तर दिया जा सकता है कि वे श्वेताम्बर थे, इसलिए साम्प्रदायिक भावना से प्रेरित होकर उन्होंने ऐसा किया। किन्तु प्रो० हीरालाल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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