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अ०१० / प्र०८
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ५१३
इसी प्रकार नियुक्तियों के कर्त्ता श्वेताम्बर - परम्परा के भद्रबाहु - द्वितीय ही थे, किन्तु दसवीं शती ई० के बाद के शीलांकाचार्य आदि श्वेताम्बरमुनियों ने अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु (प्रथम) का नाम नियुक्तिकार के रूप में प्रचलित कर दिया। प्रो० हीरालाल जी ने जो श्लोक और गाथा - वचन द्वितीय भद्रबाहु के श्रुतकेवली कहे जाने के प्रमाणरूप में उद्धृत किये है। (देखिए, पा. टि. २७३) वे इन्हीं प्रथम भद्रबाहु से सम्बन्धित हैं, द्वितीय भद्रबाहु से नहीं । इस तथ्य की पुष्टि श्वेताम्बर विद्वान् डॉ० सागरमल जी के निम्नलिखित वचनों से होती है
“निर्युक्तियों के लेखक कौन हैं और उनका रचनाकाल क्या है, ये दोनों प्रश्न एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं । अतः हम उन पर अलग-अलग विचार न करके एक साथ ही विचार करेंगे।
'परम्परागत रूप से अन्तिम श्रुतकेवली, चतुर्दशपूर्वधर तथा छेदसूत्रों के रचयिता आर्य भद्रबाहु - प्रथम को ही निर्युक्तियों का कर्त्ता माना जाता है। मुनि श्री पुण्यविजय जी ने अत्यन्त परिश्रम द्वारा श्रुतकेवली भद्रबाहु को नियुक्तियों के कर्त्ता के रूप में स्वीकार करनेवाले निम्न साक्ष्यों को संकलित करके प्रस्तुत किया है, जिन्हें हम अविकलरूप से दे रहे हैं
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१.“अनुयोगदायिनः---सुधर्मस्वामिप्रभृतयः यावदस्य भगवतो निर्युक्तिकारस्य भद्रबाहुस्वामिनश्चतुर्दशपूर्वधरस्याचार्योऽतस्तान् सर्वानिति।” (शीलाङ्काचार्यकृतटीका / आचारांगसूत्र / पत्र ४) ।
२. “साधूनामनुग्रहाय चतुर्दशपूर्वधरेण भगवता भद्रबाहुस्वामिना कल्पसूत्रं व्यवहारसूत्रं चाकारि। उभयोरपि च सूत्रस्पर्शिका निर्युक्तिः । " (मलयगिरिकृतटीका / बृहत्कल्पपीठिका / पत्र ४)
(यहाँ विस्तारभय से चार उद्धरण मैंने छोड़ दिये हैं । — प्रस्तुतग्रन्थलेखक ।)
" इन समस्त सन्दर्भों को देखने से स्पष्ट होता है कि श्रुतकेवली, चतुर्दशपूर्वधर भद्रबाहु - प्रथम को नियुक्तियों के कर्त्ता के रूप में मान्य करनेवाला प्राचीनतम सन्दर्भ आर्य शीलांक का है । आर्य शीलांक का समय विक्रमसंवत् की ९वीं - १०वीं सदी माना जाता है। जिन अन्य आचार्यों ने नियुक्तिकार के रूप में भद्रबाहु - प्रथम को माना है, उनमें आर्यद्रोण, मलधारी हेमचन्द्र, मलयगिरि, शान्ति सूरि तथा क्षेमकीर्ति सूरि के नाम प्रमुख हैं, किन्तु ये सभी आचार्य विक्रम की दसवीं सदी के पश्चात् हुए हैं। अतः इनका कथन बहुत अधिक प्रामाणिक नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने जो कुछ लिखा है, वह मात्र अनुश्रुतियों के आधार पर लिखा है। दुर्भाग्य से ८- ९वीं सदी के पश्चात्
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