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अ०१०/प्र०८
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ४९५ ५१ में शिवकुमार नामक भाव श्रमण का उल्लेख है, जो युवतिजन से वेष्टित होते हुए भी विशुद्धमति रह, संसार के पार उतर गये।२३९ इसका जब हम भगवती-आराधना की ११०८ से १११६ तक की गाथाओं से मिलान करते हैं, जहाँ स्त्रियों और भोगविलास में रहकर भी उनके विष से बच निकलने का सुन्दर उपदेश दिया गया है,२४० तो हमें यह भी सन्देह होने लगता है कि यहाँ भी कुन्दकुन्द का अभिप्राय इन्हीं शिवार्य से हो, तो आश्चर्य नहीं। उनके उपदेश का उपचार से उनमें सद्भाव मान लेना असम्भव नहीं है।
इस विवेचन से हम निम्नलिखित निष्कर्षों पर पहुंचते हैं
१. बोटिकसंघ के संस्थापक कहे जानेवाले शिवभूति स्थविरावली के प्रतिष्ठित आचार्यों में से एक थे।
२. उन्होंने पीछे नन्दिसंघ में प्रवेश किया होगा और उस संघ के आगम का उन्होंने जिननन्दी, सर्वगुप्त और मित्रनन्दी इन तीन आचार्यों से उपदेश पाया।
३. जब ये शिवभूति स्वयं अनुक्रम से संघ के नायक हुये, तब उन्होंने सम्भवतः उस संघ में कुछ परिवर्तन उपस्थित किये, जिनके कारण उनके अनुयायी बोटिक कहलाये।
४. उन्होंने मुनि आचार पर आराधना, मूलाराधना या भगवती-आराधना की रचना की, जिसमें उन्होंने अपना नाम शिवार्य प्रकट किया है। इस ग्रन्थ में ऐसा शासन पाया जाता है, जो कुन्दकुन्द के शासन से पूर्वकालीन सिद्ध होता है।
५. कुन्दकुन्दाचार्य ने भावपाहुड़ में जिन भावश्रमण शिवभूति का उल्लेख किया है, वे संभवतः ये ही शिवभूति या शिवार्य हैं।
अब आगे यह प्रश्न उठता है कि क्या जिस स्थान पर शिवभूति के संघ की स्थापना हुई कही जाती है, उसका भी कोई पता चल सकता है? उक्त स्थान का दिगम्बरों से सम्बन्ध होने के कारण दक्षिण भारत में ही उस स्थान के पाये जाने की सम्भावना प्रतीत होती है, जिसे मूलभाष्य के कर्ता ने रहवीरपुर कहा है, विशेषकर
२३९. भावसवणो य धीरो जुवईजणवेडिओ विसुद्धमई।
णामेण सिवकुमारो परित्तसंसारिओ जादो॥ ५१॥ भावपाहुड। २४०. उदयम्मि जायवडिय उदएण ण लिप्पदे जहा पउमं।
तह विसएहिं ण लिप्पदि साहू विसएसु उसिओ वि॥ ११०८॥ भगवती-आराधना। सिंगारतरंगाए विलासवेगाए जोव्वणजलाए। विहसियफेणाए मुणी णारिणईए ण बुड्डेति॥ ११११॥ भगवती-आराधना।
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