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४९० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०१०/प्र०८ सवस्त्रमुक्ति और स्त्रीमुक्ति के समर्थक मुनियों ने उमास्वाति के नेतृत्व में पृथक् यापमीयसंघ बना लिया।
यह कपोलकल्पित इतिहास वैसा ही है जैसा श्वेताम्बरमुनि श्री कल्याणविजय जी ने सन् १९४१ ई० में प्रकाशित अपने ग्रन्थ 'श्रमण भगवान् महावीर' में कल्पित किया है, जिसे पूर्व में उद्धृत किया जा चुका है। प्रो० हीरालाल जी ने यह लेख सन् १९४४ ई० में लिखा था। इससे ऐसा लगता है कि उन्होंने मुनि कल्याणविजय जी से प्रेरणा प्राप्त कर और संभवतः श्वेताम्बर मित्रों को खुश करने के लिए यह मिथ्या इतिहास गढ़ा है।
दिगम्बर विद्वानों में इस लेख ने तथा इसके पूर्व लिखे गये प्रोफेसर सा० के अन्य लेखों ने तीव्र क्षोभ पैदा किया था, फलस्वरूप उनके द्वारा प्रोफेसर सा० का उसी समय कड़ा विरोध किया गया। स्व० पं० परमानन्द जी शास्त्री, स्व० डॉ० दरबारीलाल जी कोठिया, स्व० पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार, स्व० पं० रामप्रसाद जी शास्त्री आदि मूर्धन्य दिगम्बर विद्वानों ने अमोघ तर्कों और प्रमाणों से प्रोफेसर सा० के तर्कों का जोरदार खण्डन कर उनके निष्कर्षों को मिथ्या सिद्ध किया है।
प्रो० हीरालाल जी के कुन्दकुन्द से सम्बन्धित दो लेखों के साथ उनके खण्डन में लिखे गये दो महत्त्वपूर्ण लेखों को यहाँ ज्यों का त्यों उद्धृत किया जा रहा है, ताकि जिनशासनभक्त सत्य से अवगत हो जायँ और कभी प्रो० हीरालाल जी के उक्त लेख उनके पढ़ने में आयें, तो उनका श्रद्धान शिथिल होने से बच सके। १.१. पहला लेख
शिवभूति और शिवार्य २२३ लेखक : प्रोफेसर हीरालाल जी जैन
___ आवश्यक मूलभाष्य की२२४ बहुधा उल्लिखित कुछ गाथाओं के अनुसार बोटिकसंघ की स्थापना महावीर के निर्वाण से ६०९ वर्ष पश्चात् रहवीरपुर में शिवभूति के नायकत्व
२२३. “दिगम्बर जैन सिद्धान्तदर्पण' (द्वितीय अंश)/सम्पादक : पं. रामप्रसाद जी शास्त्री/प्रकाशक
: दिगम्बर जैन पंचायत, बम्बई /१२ दिसम्बर, १९४४ ई. / पृ.१२-१७ से उद्धृत। २२४. छव्वाससयाइं नवुत्तराई तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स।
तो बोडिआण दिट्ठी रहवीरपुरे समुप्पण्णा ॥ १४५ ॥ रहवीरपुरं नगरं दीवगमुज्जाण अज्जकण्हे य। सिवभूइस्सुवहिम्मिय पुच्छा थेराण कहणा य॥ १४६ ॥
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