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________________ अ०१०/प्र.६ आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ४७९ में प्रयुक्त न कर केवल शुद्धात्मा और अशुद्धात्मा के अर्थों में प्रयुक्त किया होता, तब कहा जा सकता था कि उन्होंने उक्त शब्दों को सर्वथा नये अर्थों में व्यवहृत किया है। किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। अतः प्रो० ढाकी का यह कथन समीचीन नहीं है कि कुन्दकुन्द के द्वारा उक्त शब्द परम्परागत अर्थ की अपेक्षा सर्वथा नये अर्थ में प्रयुक्त किये गये हैं, अतः वे (कुन्दकुन्द) अर्वाचीन हैं। __आत्मा के अर्थ में 'समय' शब्द का प्रयोग श्वेताम्बरसाहित्य में तो मिलता ही नहीं है, दिगम्बरसाहित्य में भी 'समयसार' के अतिरिक्त और किसी ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं है। मूलाचार में समयसाराधिकार की प्रथम गाथा में समयसार शब्द का प्रयोग है, किन्तु उसका अर्थ शुद्धात्मा नहीं है, अपितु 'जिनागम का सार' है। और आत्मा के अर्थ में 'समय' शब्द के प्रसिद्ध हुए बिना कुन्दकुन्द का उस शब्द के माध्यम से आत्मा के सूक्ष्म, गूढ स्वरूप के विवेचन का प्रयास निरर्थक होता। इससे ध्वनित होता है कि कुन्दकुन्द उस प्राचीन युग के हैं, जब दिगम्बरजैनपरम्परा में 'समय' शब्द आत्मा के अर्थ में भी प्रसिद्ध था और दर्शनज्ञानचारित्र-स्थित आत्मा स्वसमय कहलाता था तथा मोहरागद्वेष-परिणत आत्मा परसमय। इस प्रकार इन अर्थों में 'समय', 'स्वसमय' और 'परसमय' शब्दों का प्रयोग कुन्दकुन्द की प्राचीनता का सूचक है। अतः इन शब्दों के प्रयोग से उनके ईसापूर्वोत्तर प्रथम शताब्दी में विद्यमान होने की पुष्टि होती है। १२ कुन्दकुन्द प्रतिपादित 'शुद्धोपयोग' ८वीं शती ई. से पूर्व अज्ञात प्रो० ढाकी का चौथा अन्तरंग हेतु-कुन्दकुन्द ने उपयोग के शुभ और अशुभ भेदों के अतिरिक्त एक तीसरे 'शुद्ध' भेद को भी जन्म दिया है। यह पहले अज्ञात था। (Asp. of Jaino, vol. III, p.199)। निरसन पूर्ववर्ती ग्रन्थों में भी 'शुद्धोपयोग' का उल्लेख ढाकी जी कुन्दकुन्द को आठवीं सदी ई० का मानते हैं। किन्तु आठवीं सदी के पहले से लेकर ईसा की पहली सदी तक के ग्रन्थों में शुद्धोपयोग का उल्लेख मिलता है। अतः यह कथन मिथ्या है कि आठवीं सदी के पूर्व तक यह अज्ञात था। देखिए Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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