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अ०१०/प्र०६
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ४६७ ही एक गाथा प्रवचनसार में उपलब्ध होती है। श्वेताम्बर-आगम और आगमिक साहित्य तो कुन्दकुन्द से सर्वथा अपरिचित है, इसलिए यह स्पष्ट है कि उक्त गाथाएँ तथा अन्य अनेक गाथाएँ कुन्दकुन्द ने यापनीयों के माध्यम से अथवा स्वयं ही श्वेताम्बरग्रन्थों से ग्रहण की हैं। (Asp. of Jaino., Vol. III, p.197)।
निरसन कुन्दकुन्द का स्थितिकाल ईसापूर्वोत्तर प्रथम शताब्दी प्रथम प्रकरण में सोदाहरण निरूपण किया गया है कि कुन्दकुन्द के ग्रन्थों की अनेक गाथाएँ प्रथम शताब्दी ई० में रचित भगवती-आराधना और मूलाचार नामक दिगम्बरग्रन्थों में प्राप्त होती हैं। प्रथम-द्वितीय शताब्दी ई० के उमास्वाति ने 'तत्त्वार्थ' के अनेक सूत्रों की रचना कुन्दकुन्द के ग्रन्थों के आधार पर की है। द्वितीय शती ई० की तिलोयपण्णत्ती एवं छठी शती ई० के परमात्मप्रकाश में कुन्दकुन्द की गाथाएँ आत्मसात् की गयी हैं। ईसोत्तर पाँचवीं शती के पूज्यपादस्वामी ने, ईसोत्तर आठवीं शती के पूर्वार्ध में हुए अपराजित सूरि ने तथा उत्तरार्ध में वर्तमान वीरसेन स्वामी ने अपने टीकाग्रन्थों में कुन्दकुन्द की गाथाएँ उक्तं च कहकर उद्धृत की हैं। ४६६ ई० के मर्करा-ताम्रपत्रलेख में कुन्दकुन्दान्वय के छह गुरु-शिष्यों के नाम वर्णित हैं। 'दि इण्डियन एण्टिक्वेरी' में प्रकाशित नन्दिसंघीय पट्टावली में कुन्दकुन्द का पट्टारोहणकाल ईसापूर्व प्रथम शताब्दी के उत्तरार्ध में बतलाया गया है। इन तथ्यों को पूर्व में युक्तिप्रमाणपूर्वक निर्विवाद सिद्ध किया गया है। अतः आचार्य कुन्दकुन्द ईसापूर्वोत्तरप्रथम शताब्दी में हुए थे, इसमें सन्देह के लिए अवकाश नहीं है। फलस्वरूप तीसरी-चौथी शताब्दी ई० के श्वेताम्बर-प्रकीर्णक ग्रन्थों की गाथाओं का कुन्दकुन्द द्वारा ग्रहण किया जाना संभव नहीं है। वे गाथाएँ या तो दोनों सम्प्रदायों की समान मूल परम्परा से आयी हैं अथवा श्वेताम्बर ग्रन्थों में कुन्दकुन्दसाहित्य से पहुंची हैं। भाषाविज्ञान की गुत्थियों में उलझाकर उपर्युक्त प्रमाणों को मेटा नहीं जा सकता। उक्त प्रमाणों के प्रकाश में ही भाषावैज्ञानिक नियमों की खोज करनी होगी।
कुन्दकुन्द द्वारा निश्चयनय का गहन-विस्तृत प्रयोग प्रो० ढाकी ने बहिरंग हेतुओं के पश्चात् अन्तरंग हेतुओं को लेकर कुन्दकुन्द को आठवीं शताब्दी ई० का सिद्ध करने की चेष्टा की है। पहले अन्तरंग हेतु का प्रदर्शन करते हुए वे लिखते हैं कि यद्यपि कुन्दकुन्द के पूर्ववर्ती आचार्य भी निश्चयनय
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