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अ०१०/प्र०६
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ४५३
८वीं शती ई. से पूर्ववर्ती ग्रन्थों में कुन्दकुन्द का उल्लेख नहीं
प्रो० ढाकी लिखते हैं-"स्वामी समन्तभद्र, पूज्यपाद देवनन्दी और भट्टअकलंक ने अपने ग्रन्थों में न तो कुन्दकुन्द के नाम का उल्लेख किया है, न ही उनकी गाथाएँ उद्धृत की हैं, और न उनके विचारों का प्रभाव उनके लेखन पर दृष्टिगोचर होता है। (Asp. of Jaino., vol.III, p.187)। उक्त तीनों आचार्यों ने उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र पर टीकाएँ लिखी हैं, किन्तु कुन्दकुन्द के किसी भी ग्रन्थ पर टीका लिखने का प्रयत्न नहीं किया। उनके ग्रन्थों पर सर्वप्रथम टीका नौवीं शताब्दी ई० के उत्तरार्ध तथा दसवीं के पूर्वार्ध में हुए आचार्य अमृतचन्द्र ने लिखी है। इसके अतिरिक्त हरिवंशपुराणकार जिनसेन तथा आदिपुराण के कर्ता जिनसेन ने अपने ग्रन्थों में समन्तभद्र, पूज्यपाद देवनन्दी, सिद्धसेन, वीरसेन आदि के गुणों का कीर्तन तो किया है, किन्तु कुन्दकुन्द का नाम नहीं लिया। इससे सिद्ध होता है कि इन आचार्यों के काल तक कुन्दकुन्द का जन्म ही नहीं हुआ था।" (Asp. of Jaino.,vol. III, pp.188-189)।
निरसन मूलाचार आदि में कुन्दकुन्द की गाथाएँ . प्रथम प्रकरण में कुन्दकुन्द के ग्रन्थों की वे गाथाएँ उद्धृत की गयी है, जिन्हें प्रथम शती ई० के ग्रन्थ 'भगवती-आराधना' और 'मूलाचार' में आत्मसात् किया गया है, उन गाथांशों के उदाहरण दिये गये हैं, जिनको संस्कृत में परिवर्तित कर प्रथमद्वितीय शती ई० के उमास्वामी ने 'तत्त्वार्थ' के अनेक सूत्रों की रचना की है, वे अनेक गाथाएँ बतलायी गयी हैं जिनको द्वितीय शती ई० के आचार्य यतिवृषभ ने 'तिलोयपण्णत्ती' का अंग बनाया है। पाँचवीं शती ई० के पूज्यपाद स्वामी ने 'तत्त्वार्थ' के सूत्रों में प्रतिपादित मन्तव्यों को प्रमाणित करने के लिए कुन्दकुन्द की जिन गाथाओं को आगमप्रमाण के रूप में उद्धृत किया है तथा 'समाधितन्त्र' और 'इष्टोपदेश' में संस्कृत रूप देकर अपनाया है, उन्हें भी सामने रखा गया है। कुन्दकुन्द की जो गाथाएँ छठी शताब्दी ई० के जोइन्दुदेव ने ‘परमात्मप्रकाश' और 'योगसार' में दोहों के रूप में तथा सातवीं शती ई० के जटासिंहनन्दी ने 'वरांगचरित' में संस्कृतपद्यों की आकृति में समाविष्ट की हैं, उनका भी साक्षात्कार कराया गया है। ईसा की आठवीं शताब्दी के अपराजित सूरि ने 'विजयोदया' टीका में तथा वीरसेन स्वामी ने 'धवला' एवं 'जयधवला' टीकाओं में कुन्दकुन्द की जिन गाथाओं को प्रमाणरूप में उपस्थित किया है, उनका भी विस्तार से उल्लेख किया गया है। और वहाँ इस बात के प्रमाण भी
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