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४३८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०१०/प्र०५ निरस्त किया है। उन्होंने जीवसमास को ईसापूर्व चौथी सदी की कृति मानकर इस सम्भावना को निरस्त किया है कि जीवसमास की रचना षटखण्डागम के आधार पर हुई है। वे लिखते हैं
"यहाँ यह शंका की जा सकती है कि संभव है षट्खण्डागम के उक्त जीवस्थान के विशद एवं विस्तृत वर्णन का जीवसमासकार ने संक्षेपीकरण किया हो, जैसा कि धवला-जयधवला टीकाओं का संक्षेपीकरण गोम्मटसार के रचयिता नेमिचन्द्राचार्य ने किया है। पर, इस शंका का समाधान यह है कि पहले तो गोम्मटसार के रचयिता ने उसमें अपना नाम स्पष्ट शब्दों में प्रकट किया है, जिससे वह परवर्ती रचना सिद्ध हो जाती है। पर यहाँ तो जीवसमासकार ने न तो अपना नाम कहीं दिया है और न परवर्ती आचार्यों ने ही उसे किसी आचार्य-विशेष की कृति बताकर नामोल्लेख किया है। प्रत्युत उसे 'पूर्वभृत्सूरि-सूत्रित' ही कहा है, जिसका अर्थ यह होता है कि जब यहाँ पर पूर्वो का ज्ञान प्रवहमान था, तब किसी पूर्ववेत्ता आचार्य ने दिन पर दिन क्षीण होती हुई लोगों की बुद्धि और धारणाशक्ति को देखकर ही प्रवचन-वात्सल्य से प्रेरित होकर इसे गाथारूप में निबद्ध कर दिया है। और वह आचार्यपरम्परा से प्रवहमान होता हुआ धरसेनाचार्य को प्राप्त हुआ है।" (वही / द्वि.सं. / प्रस्ता. / पृ.९१-९२)।
इस कथन से स्पष्ट है कि पण्डित जी ने जीवसमास को दिगम्बरग्रन्थ एवं ईसापूर्व चतुर्थ शताब्दी की रचना मानकर ही उसे षट्खण्डागम के 'जीवस्थान' का आधार माना है। यदि वे इस तथ्य से अभिज्ञ होते कि वह श्वेताम्बरग्रन्थ है और ईसा की छठी शती के उत्तरार्ध में रचा गया है, तो वे भी यह निर्णय देते कि वह षट्खण्डागम के आधार पर निर्मित हुआ है, उसमें षट्खण्डागम का संक्षेपीकरण किया गया है।
इसलिए डॉ० सागरमल जी ने जीवसमास को षट्खण्डागम का आधारभूत ग्रन्थ सिद्ध करने के लिए जो यह प्रमाण प्रस्तुत किया है कि दिगम्बर विद्वान् पं० हीरालाल जी शास्त्री ने भी जीवसमास को षट्खण्डागम के जीवस्थान का आधार माना है, वह भ्रान्तिजन्य होने से भ्रान्तिपूर्ण है। अतः उससे इस बात की पुष्टि नहीं होती कि षट्खण्डागम के जीवस्थान की रचना जीवसमास के आधार पर हुई है।
६. यदि जीवसमास को षट्खण्डागम के जीवस्थान-खण्ड की रचना का आधार माना जाय तो, प्रश्न उठता है कि उसके २. खुद्दाबन्ध (क्षुद्रबन्ध), ३. बन्धस्वामित्वविचय, ४. वेदना, ५. वर्गणा एवं ६. महाबन्ध, इन शेष पाँच खण्डों की रचना किन ग्रन्थों के आधार पर हुई ? क्योंकि इन पाँच खण्डों की सामग्री तो जीवसमास ग्रन्थ में
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