________________
अ०१०/प्र०५
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ४१७ शिवभूति के शिष्य थे। यहाँ तक कि उक्त विद्वान् ने आर्यभद्र को बोटिक शिवभूति का अनुयायी मानकर भद्रान्वय नाम की यापनीयशाखा का संस्थापक तक घोषित कर दिया है। वे लिखते हैं
__ "विदिशा के उदयगिरि के अभिलेख (गुप्त संवत् १०६, वि० सं० ४२६) में पार्श्वनाथ की प्रतिमा को स्थापित करानेवाले ने अपने आप को आर्यकुल और भद्रान्वय के आचार्य गोशर्मा का शिष्य बताया है। इस अभिलेख के भद्रान्वय को यापनीयपरम्परा का पूर्व नाम माना जा सकता है। कल्पसूत्र-स्थविरावली में आर्य शिवभूति और आर्य कृष्ण, जिनके मध्य वस्त्रपात्र-विवाद हआ था. के पश्चात आर्यभद्र का नाम आता है। मेरी दृष्टि में इस शिलालेख में उल्लिखित आर्यकुल और भद्रान्वय का सम्बन्ध इन्हीं आर्यभद्र से हो सकता है। संभावना है कि काश्यपगोत्रीय आर्यभद्र, आर्य शिवभूति के पक्षधर रहे हों और उन्हें ही अग्रगण्य मानकर यह परम्परा अपने को आर्यकुल
और भद्रान्वय की मानती हो। यह निश्चित है कि उत्तरभारत की यह अचेलपरम्परा जिसे हम बोटिक या यापनीय के नाम से जानते हैं, मथुरा से लेकर साँची तक अपना व्यापक प्रभाव रखती थी। संभावना यही है कि उत्तरभारत में अपने प्रारम्भिक काल में यह यापनीयपरम्परा आर्यकुल और भद्रान्वय के नाम से पहचानी जाती रही हो।" (जै.ध.या.स./ पृ.१९)।
अब उपर्युक्त विद्वान् की किस बात को सत्य माना जाय? आर्यभद्र बोटिकमत के प्रवर्तक शिवभूति के पूर्व हुए थे, इस बात को अथवा वे शिवभूति के शिष्य थे, इसको? आर्यभद्र बोटिक शिवभूति के पूर्व नहीं हुए थे, यह तो ऊपर सिद्ध हो चुका है और वे उसके शिष्य थे यह कल्पसूत्र की स्थविरावली कहती है। अब यदि आर्यभद्र को बोटिक शिवभूति का शिष्य और उसके द्वारा स्थापित यापनीयसंघ की भद्रान्वय शाखा का सूत्रधार मानते हुए नियुक्तियों का कर्ता माना जाय तो समस्त श्वेताम्बरीय नियुक्तियाँ यापनीय आचार्य द्वारा रचित सिद्ध होती हैं। और तब यह तर्क मिथ्या हो जाता है कि नियुक्तियों में बोटिक निह्नव का उल्लेख न होने से वे छठी शताब्दी ई० के भद्रबाहु-द्वितीय द्वारा रचित नहीं मानी जा सकतीं, क्योंकि जो नियुक्तियाँ बोटिक (गुणस्थानविकासवादी विद्वान् के मतानुसार यापनीय) आचार्य द्वारा ही रचित सिद्ध हो रही हों, उनमें बोटिक मत का उल्लेख न मानकर उसकी उत्पत्ति के पूर्व रचित मानी जायँ, इस जैसी हास्यापद चेष्टा और क्या हो सकती है?
स्पष्ट है कि गुणस्थानविकासवादी विद्वान् को, जो श्वेताम्बर हैं, बोटिक (यापनीय) मत के अनुयायी आर्यभद्र के द्वारा नियुक्तियों के रचे जाने की बात स्वीकार्य नहीं हो सकती और उक्त आर्यभद्र के अलावा अन्य आर्यभद्र का उल्लेख किसी भी स्थविरावली
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org