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________________ ४१६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २ अ०१०/प्र०५ सावत्थी उसभपुर सेयविया मिहिल उल्लुगातीरं। पुरिमंतरंजि दसपुर रहवीरपुरं च नगराई॥ ७८१॥ वृत्तिकार श्री हरिभद्र सूरि ने इस गाथा का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा "श्रावस्ती ऋषभपुरं श्वेतविका मिथिला उल्लुकातीरं पुरमन्तरञ्जि दशपुरं रथवीरपुरं च नगराणि निह्नवानां यथायोग्यं प्रभवस्थानानि, वक्ष्यमाणभिन्नद्रव्यलिङ्गमिथ्यादृष्टि-बोटिक-प्रभवस्थान-रथवीरपुरोपन्यासो लाघवार्थ इति गाथार्थः।" (हारि. वृत्ति/ आव.नियु./ गा.७८१)। अनुवाद-"श्रावस्ती, ऋषभपुर, श्वेतविका, मिथिला, उल्लुकातीर, अन्तरंजियापुरी, दशपुर और रथवीरपुर, ये नगर निह्नवों के यथायोग्य उत्पत्तिस्थान हैं। रथवीरपुर नामक नगर का उल्लेख आगे कहे जानेवाले बोटिक नामक भिन्नद्रव्यलिंगी मिथ्यामत का उत्पत्तिस्थान बतलाने के लिए किया गया है।" इस प्रकार भद्रबाहु-द्वितीयकृत नियुक्तियों में बोटिक-निह्नव का स्पष्ट शब्दों में उल्लेख है, अतः उक्त गुणस्थानविकासवादी विद्वान् का यह कथन भी मिथ्या है कि नियुक्तियों में बोटिक-निह्नव की चर्चा नहीं है। नियुक्तियों में बोटिक-निह्नव की चर्चा है, इसलिए उन्हें पाँचवीं शती ई० के भद्रबाहु-द्वितीय की कृति मानने में कोई बाधा नहीं है। ३. गुणस्थानविकासवादी विद्वान् ने नियुक्तियों का रचनाकाल वीर निर्वाण संवत् ६०९ के पूर्व अर्थात् बोटिकमत की उत्पत्ति से पहले कल्पित किया है। मुनि श्री कल्याणविजय जी (अ.भ.म./पृ.२००), श्री विजयेन्द्र सूरि, आचार्य श्री हस्तीमल जी (जै.ध.मौ.इ. / भा.१ / पृ.७७०) आदि सभी श्वेताम्बर मुनियों एवं सिद्धान्ताचार्य पं० कैलाशचन्द्र जी शास्त्री (जै.सा.इ./ पू.पी./ पृ.३३७), डॉ० नेमिचन्द्र जी ज्योतिषाचार्य (ती.म.आ.प./ खं.१ / पृ.२९१) आदि समस्त दिगम्बरविद्वानों ने भगवान् महावीर की निर्वाणतिथि ५२७ ई० पू० (विक्रमपूर्व ४७०) मानी है। अतः वीर नि० सं० ६०९, ईसवी सन् (६०९-५२७) ८२ में पड़ता है, न कि ई० सन् १४२ में, जैसा कि गुणस्थानविकासवादी विद्वान् ने आकलित किया है। अतः स्पष्ट है कि ई० सन् १४२ में हुए आर्यभद्र उक्त विद्वान् के द्वारा ई० सन् ८२ के पूर्व लिखित मानी गयी नियुक्तियों के कर्ता नहीं हो सकते। ४. उक्त विद्वान् एक तरफ लिखते हैं कि नियुक्तियों की रचना बोटिक शिवभूति से पूर्व उत्पन्न हुए आर्यभद्र ने की है, दूसरी तरफ कहते हैं कि आर्यभद्र बोटिक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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