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अ०१०/प्र०५
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ४१५ के उल्लेख का अभाव यही सिद्ध करता है कि नियुक्तियाँ वी० नि० सं० ६०९ (ई० सन् १४२) के पूर्व लिखी गई हैं। इस प्रकार वे ई० सन् की द्वितीय शताब्दी के पूर्वार्ध में लिखी गई हैं। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि क्या इस काल में कोई भद्रबाहु हुए हैं? हमने कल्पसूत्र की पट्टावली का अध्ययन करने पर यह पाया कि आर्य कृष्ण और आर्य शिवभूति, जिनके बीच सचेलता और अचेलता के प्रश्न को लेकर विवाद हुआ था और बोटिकसम्प्रदाय की उत्पत्ति हुई थी, के समकालिक एक आर्यभद्र हुए हैं। ये आर्य शिवभूति के शिष्य थे, ये आर्य नक्षत्र एवं आर्य रक्षित से ज्येष्ठ थे और इनका काल ई० सन् की द्वितीय-तृतीय शताब्दी ही रहा है। अतः यह मानना होगा कि नियुक्तियाँ इन्हीं आर्यभद्र की रचनाएँ हैं और आगे चलकर नामसाम्य और भद्रबाहु की प्रसिद्धि के कारण उनकी रचनाएँ मानी जाने लगीं। जिस प्रकार प्रबन्धों के लेखकों ने प्राचीन भद्रबाहु और वराहमिहिर के भद्रबाहु के कथानक मिला दिये हैं, उसी प्रकार नियुक्तिकार आर्यभद्र से भद्रबाहु की एकरूपता कर ली गई है।" ( गुण.सिद्धा.एक विश्ले./पृ.२२-२३)। .
विरोधी तर्कों का निरसन आचारांगनियुक्ति को द्वितीय शताब्दी ई० की रचना सिद्ध करने के लिए गुणस्थानविकासवादी विद्वान् ने जो हेतु बतलाये हैं, वे मिथ्या हैं, यह निम्नलिखित तथ्यों से सिद्ध होता है
१. 'तत्त्वार्थ' के गुणश्रेणिनिर्जरासूत्र में गुणस्थानों के ही नामों का वर्णन है, यह पूर्व में सिद्ध किया जा चुका है, अतः आचारांगनियुक्ति की गुणश्रेणिनिर्जरा-विषयक गाथाओं में भी गुणस्थानों के ही नामों का उल्लेख है, यह स्वतः सिद्ध है। उनमें आदि के तीन गुणस्थानों को छोड़कर शेष ग्यारह गुणस्थानों का शब्दतः और अर्थतः वर्णन है, क्योंकि उनमें ही गुणश्रेणिनिर्जरा होती है। इसके अतिरिक्त उनमें उपशमक
और क्षपक श्रेणियों तथा 'अनन्तवियोजक' एवं 'दर्शनमोहक्षपक' के उल्लेख द्वारा गुणस्थानसिद्धान्त की सूक्ष्म जानकारी भी दी गयी है। अतः उक्त विद्वान् का यह कथन सत्य नहीं है कि नियुक्तियाँ गुणस्थानसिद्धान्त की चर्चा नहीं करतीं। उनमें गुणस्थानसिद्धान्त पूर्णतः समाविष्ट है, इस सत्य को उक्त विद्वान् के अतिरिक्त सभी विद्वज्जन स्वीकार करते हैं। अतः नियुक्तियों को पाँचवीं-छठी शताब्दी ई० के भद्रबाहु-द्वितीय की रचना मानने में बाधा नहीं आती।
२. भद्रबाहु-द्वितीय द्वारा रचित 'आवश्यकनियुक्ति' में स्पष्टतः कहा गया है कि रथवीरपुर में आठवें निह्नव की उत्पत्ति हुई थी। देखिए
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