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३२८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०१० / प्र०३
“ज्ञानप्रबोध नामक पद्यबद्ध भाषाग्रन्थ में कुन्दकुन्दाचार्य की एक कथा दी है। उसमें कुन्दकुन्द को इसी बारापुर या बारा के धनी कुन्दश्रेष्ठी और कुन्दलता का पुत्र बतलाया है। पाठक जानते हैं कि कुन्दकुन्द का एक नाम पद्मनन्दी भी है । जान पड़ता है कि जम्बूदीपप्रज्ञप्ति के कर्त्ता पद्मनन्दी को ही भ्रमवश कुन्दकुन्द समझकर ज्ञानप्रबोध के कर्त्ता ने कुन्दकुन्द का जन्मस्थान कर्नाटक के कोण्डकुण्डपुर के बदले बारा १२१ बतला दिया है । कुन्दकुन्द नाम की उपपत्ति बिठाने के लिए कुन्दलता और कुन्द श्रेष्ठी की कल्पना भी उन्हीं के उर्वर मस्तिष्क की उपज है, जैसे उमा माता और स्वाति पिता की सन्तान उमास्वाति ।" (जै. सा. इ. / द्वि.सं./पृ. २५८-२५९) ।
इस प्रकार उक्त प्रतिष्ठापाठ की कुन्दकुन्दकथा में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के कर्त्ता पद्मनन्दी को कुन्दकुन्दाचार्य मान लेने के कारण भी उनका अस्तित्व वि० सं० ७७० में बतलाया जाना मिथ्या सिद्ध होता है ।
१२१. " सुना है कि वारा में पद्मनन्दी की एक निषिद्या भी है।" लेखक ।
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