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________________ अ०१०/प्र०३ आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ३२७ ७. प्रतिष्ठापाठ की कुन्दकुन्दकथा में कुन्दकुन्द के द्वारा जिन षट्कर्मों का चलाया जाना बतलाया गया है, उनका उल्लेख कुन्दकुन्द के किसी भी ग्रन्थ में नहीं मिलता। उक्त कथा में कुन्दकुन्द के द्वारा षट्कर्मों को चलाये जाने का कथन तो किया गया है, किन्तु उन्होंने समयसारादि में अध्यात्मतत्त्व का सर्वप्रथम निरूपण किया है, इसकी रंचमात्र भी चर्चा नहीं की गयी। उनके प्रसिद्ध ग्रन्थों में से एक के भी नाम का उल्लेख नहीं किया गया। इससे स्पष्ट होता है कि पण्डित महिपाल भट्टारक थे, अतः उन्होंने ब्राह्मणों से गृहीत अपनी आगमविरुद्ध क्रियाओं को आगमसम्मत सिद्ध करने के लिए कुन्दकुन्द जैसे परम आगमनिष्ठ एवं अध्यात्मपुरुष दिगम्बराचार्य द्वारा प्रवर्तित किये जाने का कपटपूर्ण प्रचार किया है। ८. वारानगर में एक अन्य पद्मनन्दी नामक आचार्य (ई० सन् ९७७-१०४३) थे, जिन्होंने वहाँ रहकर जंबुदीवपण्णत्ती नामक ग्रन्थ की रचना की थी। इनका परिचय देते हुए पं० नाथूराम जी प्रेमी लिखते हैं "पद्मनन्दी जिस समय वारानगर में थे, उस समय यह ग्रन्थ रचा गया है। इस नगर की प्रशंसा में लिखा है कि उसमें वापिकायें, तालाब, और भवन बहुत थे, भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों से वह भरा हुआ था, बहुत ही रम्य था, धनधान्य से परिपूर्ण था। सम्यग्दृष्टिजनों से, मुनियों के समूह से और जैन मंदिरों से विभूषित था। यह नगर पारियत्त (पारियात्र) नामक देश के अन्तर्गत था। वारानगर के प्रभु या राजा का नाम शाक्ति या शक्तिकुमार था। वह सम्यग्दर्शनशुद्ध, व्रती, शीलसम्पन्न, दानी, जिनशासनवत्सल, वीर, गुणी, कलाकुशल और नरपतिसम्पूजित था। "हेमचन्द्र ने अपने कोश में लिखा है-'उत्तरो विन्ध्यात्पारियात्रः' अर्थात् विन्ध्याचल के उत्तर में पारियात्र है। यह पारियात्र शब्द पर्वतवाची और प्रदेशवाची भी है। विन्ध्याचल की पर्वतमाला का पश्चिम भाग जो नर्मदातट से शुरू होकर खंभात तक जाता है और उत्तरभाग जो अर्बली की पर्वतश्रेणी तक गया है, पारियात्र कहलाता है। अतः पूर्वोक्त बारानगर इसी भूभाग के अन्तर्गत होना चाहिए। राजपूताने के कोटा राज्य में जो बारा नाम का कसबा है, वही बारानगर है, क्योंकि वह पारियात्रदेश की सीमा के भीतर ही आता है। नन्दिसंघ की पट्टावली२० के अनुसार बारा में एक भट्टारकों की गद्दी भी रही है और उसमें वि० सं० ११४४ से १२०६ तक के १२ भट्टारकों के नाम दिये हैं। इससे भी जान पड़ता है कि सम्भवतः ये सब पद्मनन्दी या माघनन्दी की ही शिष्यपरम्परा में हुए होंगे और यही बारा (कोटा) जम्बूदीपप्रज्ञप्ति के निर्मित होने का स्थान होगा। १२० "देखो, जैनसिद्धांतभास्कर/ किरण ४ और इंडियन ऐण्टिक्वेरी २० वीं जिल्द।" लेखक। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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