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३२६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०१०/प्र०३ ने उक्त प्रतिष्ठापाठ के विषय में जो यह दावा किया है कि इस प्रकार का निश्चित संवत् का उल्लेख आचार्य कुन्दकुन्द के सम्बन्ध में जैनवाङ्मय में कहीं भी उपलब्ध नहीं होता, सर्वथा मिथ्या है।
अतः यदि निश्चित संवत् के उल्लेख को पट्टावली आदि की प्रामाणिकता का हेतु माना जाय तो दि इण्डियन ऐण्टिक्वेरी में निर्दिष्ट पट्टावली सर्वाधिक प्रामाणिक सिद्ध होती है और इस तर्क से भी यही सिद्ध होता है कि आचार्य कुन्दकुन्द का अस्तित्व ईसापूर्वोत्तर प्रथम शताब्दी में था।
३. इसी अध्याय के प्रथम प्रकरण में कुन्दकुन्द के ईसापूर्वोत्तर प्रथम शताब्दी में होने के जो प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं, उनसे उनका वि० सं० ७७० में होना निरस्त हो जाता है।
४. उक्त प्रतिष्ठापाठ (१८८३ ई०) की अपेक्षा दि इण्डियन ऐण्टिक्वेरी में प्रकाशित पट्टावली (१७८३ ई०) तथा शुभचन्दकृत गुर्वावली (प्रो० ए० एन० उपाध्ये के अनुसार १५१६-१५५६ ई०) अधिक प्राचीन हैं। अतः प्रतिष्ठापाठ की अपेक्षा ये अधिक विश्व-सनीय हैं। इनमें कुन्दकुन्द को उमास्वाति का पूर्ववर्ती बतलाया गया है, जिससे उनका वि० सं० ७७० में होना असिद्ध हो जाता है।
५. वि० सं० ७७० में न तो नन्दिसंघ का अस्तित्व था, न सरस्वतीगच्छ का, न बलात्कारगण का। बलात्कारगण तथा सरस्वतीगच्छ की उत्पत्ति १० वीं शताब्दी ई० में, एवं नन्दिसंघ का आविर्भाव १२ वीं शती ई० में हुआ था, यह अष्टम अध्याय के तृतीय प्रकरण में सिद्ध किया जा चुका है। अतः वि० सं० ७७० ई० में इन नामोंवाले संघ, गच्छ और गण में कुन्दकुन्द के आचार्यपद पर प्रतिष्ठित होने का उल्लेख सिद्ध करता है कि प्रतिष्ठापाठ में उल्लिखित काल मनगढन्त है।
६. गिरनार पर्वत पर सरस्वती की पाषाणप्रतिमा से 'दिगम्बरमत प्राचीन है, श्वेताम्बरमत अर्वाचीन' यह कहलवाने का कार्य १४ वीं शताब्दी ई० में पद्मनन्दी नामक भट्टारक ने किया था। यह पूर्व में सप्रमाण दर्शाया जा चुका है। आचार्य कुन्दकुन्द का भी एक नाम पद्मनन्दी था। अतः नामसाम्य के कारण भट्टारक पद्मनन्दी को भ्रान्तिवश कुन्दकुन्द समझकर उनके साथ यह घटना जोड़ दी गयी। किन्तु दोनों का अस्तित्व वि० सं० ७७० अथवा उसके लगभग नहीं था, अतः भट्टारक पद्मनन्दी के साथ भी वि० सं० ७७० में उक्त घटना का जोड़ा जाना 'प्रतिष्ठापाठ' की कथा को कथंचित् बनावटी सिद्ध करता है, कुन्दकुन्द के साथ जोड़े जाने से तो उसका शतप्रतिशत बनावटी होना सिद्ध होता है।
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