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________________ अ०१०/प्र०३ आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ३२५ निरसन कुन्दकुन्द-काल के सुनिश्चित संवत् का उल्लेख केवल इण्डि. ऐण्टि. में १. इस कथा का वर्णन करनेवाली प्रतिष्ठापाठ नामक हस्तलिखित पुस्तिका की प्राप्ति को आचार्य श्री हस्तीमल जी की बहुत बड़ी खोज बतलाया गया है। किन्तु यह कथा छिपी ही नहीं थी। पं० नाथूराम जी प्रेमी ने सन् १९४२ में लिखे एक लेख में इसकी चर्चा की है और यह भी बतलाया है कि यह कथा ज्ञानप्रबोध नामक पद्यबद्ध भाषाग्रन्थ में दी गयी है। (जै.सा.इ./ द्वि.सं./ पृ.२५९)। इस ग्रन्थ में यह नहीं लिखा है कि कुन्दकुन्द संवत् ७७० में हुए थे। यदि लिखा होता, तो प्रेमी जी अवश्य इसका उल्लेख करते और इसकी प्रामाणिकता की परीक्षा करते। इससे स्पष्ट होता है कि प्रतिष्ठापाठ के लेखक ने उक्त कथा में कुन्दकुन्द के सं० ७७० में होने की बात अपने मन से जोड़ दी है। २. आचार्य हस्तीमल जी के विचारों को प्रस्तुत करते हुए श्री गजसिंह राठौड़ कहते हैं कि उक्त प्रतिष्ठापाठ नामक लघु पुस्तिका में "आचार्य श्री कुन्दकुन्द के समय के सम्बन्ध में एक सुनिश्चित संवत् का उल्लेख किया गया है कि वे विक्रम संवत् ७७० में (तदनुसार ईस्वी सन् ७१३ एवं वीर निर्वाण संवत् १२४०) में हुए। इस प्रकार का निश्चित संवत् का उल्लेख आचार्य कुन्दकुन्द के सम्बन्ध में जैन वाङ्मय में श्वेताम्बर अथवा दिगम्बर परम्परा की पट्टावलियों आदि में कहीं भी उपलब्ध नहीं होता।" (जै.ध.मौ.इ. / भा.४ / पृ.२६)। __ आचार्य जी ने ऐसा इसलिए कहा है कि उन्होंने दि इण्डियन ऐण्टिक्वेरी में प्रो० हार्नले द्वारा प्रकाशित नन्दिसंघ की पट्टावली को प्रत्यक्ष नहीं देखा। उसमें तो कुन्दकुन्द के समय के सम्बन्ध में और भी अधिक सुनिश्चित संवत् , वर्ष, मास और दिन का उल्लेख है। उसमें न केवल कुन्दकुन्द के आचार्यपद पर प्रतिष्ठित होने का वर्ष विक्रम संवत् ४९ बतलाया गया है, अपितु गृहास्थाश्रम में रहने का समग्रकाल ११ वर्ष, सामान्यमुनि के रूप में रहने की वर्ष संख्या ३३, आचार्यपद पर प्रतिष्ठत रहने की कालावधि ५१ वर्ष, १० मास और १० दिन, व्यवधानकाल ५ दिन तथा सम्पूर्ण जीवन काल ९५ वर्ष, १० मास और १५ दिन बतलाया गया है। यतः वे ११ वर्ष गृहस्थाश्रम में और ३३ वर्ष सामान्य मुनि के पद पर रहने के बाद ४४ वर्ष की आयु में विक्रम सं० ४९ में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए थे, अत: उनका जन्मवर्ष विक्रम सं० ५ अर्थात् ईसापूर्व का ५२ वाँ संवत्सर सुनिश्चित होता है। इस प्रकार कुन्दकुन्द के जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त के एक-एक दिन का हिसाब क्या उक्त प्रतिष्ठापाठ नामक लघु पुस्तिका में है? नहीं है। अतः आचार्य हस्तीमल जी Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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