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अ०१०/प्र०३
आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ३२१ का मार्ग बताया अर धन वाले कू धन बताया, पुत्रवान् कू पुत्र दिया, राज्य वाला कू राज्य दीनो। केवल धर्म का मार्ग बधावा के निमित्त हजारु श्रावक व्रती हो गये। कुंद सेठ सबन का मालिक भया। ५९४ मुनिराज हुआ। ४०० आर्जिका हुई। अब आप सकल संघ सहित श्री गिरनारजी की यात्रा वास्ते चालता भया अर श्वेताम्बरीन का संघ भी जावा चाल्या, तिनकी संख्या श्रीपूज्य तो ८४ गच्छ के अर यति १२००० अर वन के श्रावक श्रावकणी दोय लाख बावन हजार अरु चाकर पयादे बहुत सो ये दोउ संघ गिरनारजी के नीचे अपणी अपणी हद में मुकाम करते भये। तदि श्री कुन्दकुन्दाचार्य जी का संघ ऊपर चढ़ने लगा तदि श्वेताम्बरीन का हलकारा अगाड़ी नहीं करणे दीना। अर कही पहली यात्रा हमारी होयगी पीछे यात्रा तुम्हारी होयगी। यह समाचार सुणि करि सब ही पाछा आय गया। अर आचार्य सूं विनती करी हे नाथ! यह श्वेताम्बरी तो बहोत। अपना संघ थोड़ा सो यात्रा कैसे होवेगी तदि आचार्य आज्ञा करी तुम बांसुं कहो तुमारे हमारे कछु वैर तो है नहीं अर जो तुम अपने मत का आडम्बर राख्या चावो छो तो अरु याहां आवो जो जीतेंगे सो ही पहली यात्रा करेगा। अबे यात्रा तुम भी नहीं करोगे ऐसा वचन होता थका दौन्यू संघ का ही वाद ठहऱ्या ज्यो जीते सो यात्रा पहली करेगा। दिगम्बर के स्वामी श्री कुन्दकुन्दाचार्य अर श्वेताम्बर के मालिक श्रुक्ताचार्य जा के चौइस महाकाल पक्ष का साधन सो इनकै केतेक दिन तलक वाद भया। जदि येक दिन श्रुक्ताचार्य कुन्दकुन्द स्वामी का कमंडल में छाकरि दीनी अर समस्या सै कोई कहीये काहे का मुनि है यन का आचरण धीवर का है। ऐसी बात सुणि करि कोई श्रावक कही स्वामी कमंडल में कांई छै। स्वामी कही कमंडल के जल में फूल है। स्वामी दिखाओ। तदि कमंडल उंधो करयो। सो कमंडल में सूं फूल के ढेर हो गया। अर स्वामी का नाम चौथा पद्मनन्दि स्वामी प्रकट भया। श्रुक्ताचार्य पीछी कमंडल दोनूं उडाय दीनां। तदि स्वामी सब यतीन की चादर बैठना उडाय दीना। श्रुक्ताचार्य कू नग्न करि दीना। पीछे तो ऊपर चांद स्या नीचे इस तरे से चादरि चादरि परि पीछी होय गई, कुंठ ने लगी यति बाहर मेलने लाग्या ऐसा स्वामी चिमत्कार बताया। अब आप बोल्या ऐसी धूर्त विद्या से बाद नहीं होता है। अब मैं कहता हूँ या सरस्वती की प्रतिमा पाषाणमयी छे इनै बुलावो ज्यो कहै सो इ पहली यात्रा करेगा। तदि श्रुक्ताचार्य अनेक पक्ष की स्थापना करी बुलाई तो भी नहीं बोली। तदि स्वामी आप कमंडल पीछी हाथ में ले करि श्री सीमंदर स्वामी कू नमस्कार करि पीछी सरस्वती का शिर उपर धरि करि आप प्रकट बोलते भये। हे देवी! अब तूं सत्य वचन का प्रकाश करहु तदि देवी गर्जना रूप तीन बोल प्रकट बोली आदि दिगम्बर, आदि दिगम्बर, आदि दिगम्बर, गर्भ का बालक है चिहू जामे तदि दिगम्बर सम्प्रदाय सत्य रूपी होय गई। श्वेताम्बरी भी देवी कू बुलावना
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