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३२० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०१०/प्र०३ पीछी हेरण कूँ बड़ा यतन किया तदि पीछी पाई नहीं, अर गृध्र पक्षी जाति के जिनावर की पांखडी हुती सो वै अति कोमल तिनकूँ भैली करि उनकी पीछी आकार बनाय श्री मुनिराज कूँ सौंपी तदि आप कोमल जाणि अर धर्म का कारण करणे के निमित्त अंगीकार करि करि र अगाडी गमन करता भया। इस कारण से दूसरा नाम गृध्रपिछाचार्य प्रकट भया। अब विदेह क्षेत्र में जाय पहुँचे। श्रीमंदर स्वामी का समोसरण मानस्थंभादि विभूति युक्ति देखकरि प्रसन्न भये, आप अन्तरंग की सुधता धारी विमाण से उतरि भगवान् का समवसरण में प्रवेश किया अर सीमंदर स्वामी के तीन प्रदक्षिणा दे करि नमस्कार किया अर स्तुति करि अहो सर्वज्ञ तुम्हारी महिमा अगम्य है, अगोचर है, आप सकल वस्तु को सदी वही देखो, हौर आप जगत के गुरु हो, आप परमेसुर हो. आपके नाम से अनेक जन्म के पाप प्रलय होय हैं। आपका केवलान सर्व प्रतिभासी है। आप पूज्याधिक हो, आप ब्रह्मरूप हो, चतुर्मुख हो, गणधरादिक देव भी तुम्हारे गुणगण कथन करते थाक गये, हमारि कहा गति? आजि हमारा शरीर सफल भया आजि हमारी मोक्ष भई मानूँ ऐसा मैं आनन्द मानूँ या कह करि भगवान् की गंध कुटी की कटनि उपरि देव बैठावते भये, काहे तेवा का शरीर पाँच से धनुष का अर ये ६ हाथ काय सकारण, वैसे ही समय में चक्रधर आयो गंध कुटी कै उपर नजरि गई तदि हात भैले करि विचार करता भया॥ यह कौन सा आकार है छ खण्ड में यह आकार कहूं देख्या नहीं। ऐसा आकार कौन का है। तदि चक्रधर भगवान् कू पूंछता भया हे जिनेन्द्र! ये मनुष्यों का आकार कौन सा जीव है। तदि भगवान् की दिव्य ध्वनि हुई। यह भरत के मुनिराज हैं। तुम पहली धर्मवृद्धि का कारण पूछता था सो अब ये दर्शण करने निमित्त आये हैं। ऐसा शब्द सुणिकारि प्रसन्न होय चक्रधर मुनिराय कू कटनी उपरि विराजमान करि र नमस्कार करता भया तदि मुनिराज का नाम एलाचार्य प्रकट होता भया। अर भगवान् की आज्ञा हुई। इन कू सकल संदेह का निवारण करावणे वाला सिद्धांत सिखाओ। अर ग्रंथ लिखाय द्यो. सो यो धर्म का उद्योतक होयगा। अब आपके जैसा संदेह छा सो सब भगवान् सूं पूछ करि निसंदेह भया, एक दिन चक्रधर विनती करी आप आहार कू उतरो तदि आप कहि जोग्यता नाहीं काहे ते इहा दिन हमारा क्षेत्र में रात्रि हम वहां के उपजे याशे आहार कैसो अंगीकार करे सो स्वामी दिन सात (७) तांई निराहार रहे। भगवान् की दिव्य ध्वनि निरूपी अमृत के पीवते क्षुधा बाधा नै देती भई, च्यार शास्त्र लिखाये।
__ "मतान्तर निर्णय चौरासी हजार, सर्व सिद्धान्त मन बियासी हजार, कम प्रकाश बहतरि हजार, न्याय प्रकाश बासठि हजार। ऐसे ग्रंथ च्यार लेकरि भगवान् सूं आज्ञा मांगी देव विमाण में बैठ करि रामगिरि उपरि आय विराजे देव अपने स्थानक गए अब सर्व ही स्वामी की आग्या में चालते भये। श्वेताम्बर धर्म छुड़ाय दिगम्बर धर्म
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