SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अ०१० / प्र०३ आचार्य कुन्दकुन्द का समय / ३१९ कुदेव का चमत्कार प्रतिभासेगा स्व-स्व धर्म छोड़िकरि सब ही लोक उन्मार्ग में धंसेंगे। अब आपके मुख ऐसा ऋद्धि धारक मुनिराज का नाम सुन्या सो हमारे बड़ा आश्चर्य है। तदि केवल वर्णन करते भये ऐसा मुनिराज बिरले होय है। आग्या का चिमत्कार समान आर्य खण्ड में चिमत्कार होयवो करेंगे, वे सुर्गवासी देव का जीव है । इहां सभा में रविप्रभ सूर्यप्रभ देव हैं। तिनका वे आगले भव के भाई हैं। ऐसा शब्द होते दोय देव श्री भगवान् के निकट आये नमस्कार करि सकल व्याख्यान पूछ्या अर मुनिराज का दर्शण करणे वास्ते रामगिर उपर आवते भये । जिस वखत देव आये ता समे में रात्रि थी तदि मुनिराज कूँ नमस्कार करि र बैठ्या । मुनिराज बोल्या नहीं। अब उनका शिष्य विना ध्यान तिष्ठे छै तिनका दर्शन भया । उन से ही बतलावणा होत भई । अर देर देव ने कही श्रीमंदर स्वामी तुमकुं धर्मवृद्धि दीनी तदि मैं अठै आया । अबे स्वामी बोलते नहीं सो हम भगवान् के समोसरण में ही पाछा जावां छां । या कहीर देव भगवान् के समोसरण में गये । अब प्रभातिक का समय हुआ । तदि प्रभाति का नमस्कार सब ही शिष्य करते भये अर रात्रि का समाचार श्रीमंदर स्वामी सम्बन्धी सर्व विधिपूर्वक मालूम करया । अर फेर कही देव दोय आपके दर्शन करण कूँ आया सो आपका दर्शन करि र वे देव भगवंत की सभा में ही गये। ये समाचार सुणि कर श्री कुन्दकुन्द मुनिराज विशेष आनन्द कूँ प्राप्त भये, अर चौडे ऐसा शब्द का प्रकाश करते भये । अब श्रीमंदर स्वामी का दर्शन करेंगे तदि आहारादिक लेंगे। या कहि करि स्वामी फिर मौनि धार करि ध्यान में मगन भये । ऐसा ध्यान आवे तदि वेसा कारण होय । अवि दो च्यार दिन में चित्त की थिरता ते वैसा ही ध्यान प्रकट भया । अर समवसरण वणाया अर साक्षात्कार श्रीमंदर स्वामी कूँ नमस्कार करता भया, वैसा समय धर्मवृद्धि फैरि भगवंत की हुई । अर प्रस्न भया अर भगवान् कही ज्यो देव गये थे सो पाछै आये अब उनके ऐसा नियम हुआ के ज्यो दर्शण विन सर्व त्याग है। तदि देवां कही भो स्वामिन्! वे आये नहीं तदि भगवंत आज्ञा करी तम बेसमय गये तब देव पूछते भये समय कौनसा तदि भगवंत कहि । यहाँ रात्रि होती वहाँ दिन है। वहाँ दिन है यहाँ रात्रि है। सूर्य का गमन ऐसा है सो तुम दिन में वाँ जाओ तो वन का आगमन हो जायगा । ऐसा वचन सुनि करि वे दोन्यू देव ध्यान (दिन) समय में आये मुनिराज का दर्शन हुआ अर परस्पर वचनालाप हुआ । देव हाथ जोडि नमस्कार विनती करी आप विमान में विराज अर श्रीमंदर स्वामी का दर्शण करो या बात सुणिकरि प्रसन होय आप विमाण में विराजे अर विमाण आकाश मार्ग चाल्यो सो अनुक्रम से क्षेत्र भोगभूमि का देश के उपरि विमाण चल्या जाय छाँ, सो स्वामी के सामायक का समय आ गया सो सामायिक करती बखत पीछी हाथन से गिर पड़ी अर पवन का वेग अत्यन्त लाग्या ही तदि स्वामी कही अब हमारा गमन अगारी नहीं काहे, ते मुनिराज का बाना बिना मुनिराज की पिछानी नाहीं तदि देव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy