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२९८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०१०/प्र०२ शिवकुमारमहाराज मुनि थे। मुख्तार जी ने भी कहा है कि आचार्य जयसेन ने उक्त पातनिका में "शिवकुमार को जो विशेषण दिये हैं, वे एक राजा के विशेषण नहीं हो सकते। वे उन महामुनिराज के विशेषण हैं जो सरागचारित्र से भी उपरत होकर वीतरागचारित्र की ओर प्रवृत्त होते हैं।" (देखिये, मुख्तार जी का पूर्वोक्त वक्तव्य)।
प्रवचनसार के द्वितीय अधिकार की १०८ वीं गाथा की तथा तृतीय अधिकार की प्रथम गाथा की तात्पर्यवृत्ति में भी शिवकुमार महाराज को मुनिरूप में ही प्रदर्शित किया गया है।
दिगम्बरजैन-साहित्य में जैसे सम्राट चन्द्रगुप्त और सेनापति चामुण्डराय के मुनिदीक्षा ग्रहण करने का उल्लेख मिलता है, वैसे कदम्बवंशी शिवमृगेशवर्मा या पल्लववंशी शिवस्कन्दवर्मा के जिनदीक्षा ग्रहण करने की कहीं भी चर्चा नहीं मिलती। इसलिए यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि उक्त महाराजाओं में से ही कोई जिनदीक्षा ग्रहण कर कुन्दकुन्द का शिष्य बन गया था। आचार्य जयसेन के 'कश्चिदासन्नभव्यः शिवकुमारनामा' (ता.वृ./ पातनिका / प्र.सा.१/१-५)अर्थात् 'कोई शिवकुमार नाम का आसन्नभव्य' इन शब्दों से ध्वनित होता है कि शिवकुमार कोई अप्रसिद्ध पुरुष थे। उनके साथा जुड़ा 'महाराज' शब्द कोई उपाधि नहीं थी, अपितु नाम का ही अंश था, जैसे कार्तिकेयानुप्रेक्षा के कर्ता स्वामिकुमार के साथ जुड़ा स्वामी शब्द। मुनि दीक्षा ग्रहण करने के बाद 'राजपद' सूचक उपाधि का प्रयोग वीतरागता सूचक मुनिपद के अनुकूल नहीं है। आचार्य जयसेन ने भी 'शिवकुमारमहाराजनामा प्रतिज्ञां करोति' (प्र.सा. / ता.व./३/१) इस प्रयोग द्वारा महाराज शब्द को नाम का ही अंश सूचित किया है। यदि 'महाराज' उपाधि होती तो "शिवकुमारनामा महाराजः' ऐसा प्रयोग किया जाता। निष्कर्ष यह कि शिवकुमार नाम न तो राजा शिवमृगेशवर्मा का नामान्तर है, न ही शिवस्कन्दवर्मा का, अपितु किसी अराजवंशीय पुरुष का नाम है। यह अवश्य है कि 'शिवकुमारमहाराजादि-संक्षेपरुचिशिष्यप्रतिबोधनार्थम्' इस प्रयोग से यह प्रकट होता है कि 'शिवकुमार' कुन्दकुन्द के शिष्यों में प्रमुख थे। इस प्रमुखता के कारण ही संभवतः वे कुन्दकुन्द के शिष्य के रूप में प्रसिद्ध हुए और आचार्य जयसेन को किसी पारम्परिक स्रोत या अनुश्रुति से इसकी जानकारी प्राप्त हुई। उसी के आधार पर उन्होंने अपनी तात्पर्यवृत्ति में इसका उल्लेख किया है।
इसलिए जिन शिवकुमार महाराज का काल स्वयं अज्ञात है, उनके नाम के आधार पर कुन्दकुन्द के काल का निर्णय करना अन्धकार में गन्तव्य ढूँढ़ने के समान है।
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