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२९४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड २
अ०१०/प्र०२ स्थो भूत्वा धर्मार्थकामेभ्यः सारभूतामत्यन्तात्महितामविनश्वरां पंचपरमेष्ठिप्रसादोत्पन्नां मुक्तिश्रियमुपादेयत्वेन स्वीकुर्वाणः, श्रीवर्द्धमानस्वामितीर्थकरपरमदेवप्रमुखान् भगवतः पंचपरमेष्ठिनो द्रव्य-भावनमस्काराभ्यां प्रणम्य परमचारित्रमाश्रयामीति प्रतिज्ञां करोति
"इस प्रस्तावना के बाद मूल ग्रन्थ (प्रवचनसार) की मंगलादिविषयक पाँच गाथाएँ एक साथ दी हैं, जिनमें से पिछली दो गाथाएँ इस प्रकार हैं
किच्चा अरहंताणं सिद्धाणं तह णमो गणहराणं। अज्झावयवग्गाणं साहूणं चेव सव्वेसिं॥ १/४॥ तेसिं विसुद्धदसणणाणपहाणासमं समासेज।
उवसंपयामि सम्मं जत्तो णिव्वाणसंपत्ती॥ १/५॥ "इन गाथाओं में श्री कुन्दकुन्दाचार्य ने बतलाया है कि 'मैं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुओं' (पंचपरमेष्ठियों) को नमस्कार करके और उनके विशुद्ध दर्शनज्ञानरूपी प्रधान आश्रम को प्राप्त होकर (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान से सम्पन्न होकर) उस साम्यभाव (परमवीतराग-चारित्र) का आश्रय लेता हूँ , अथवा उसका सम्पादन करता हूँ, जिससे निर्वाण की प्राप्ति होती है।' और इस प्रकार की प्रतिज्ञा द्वारा उन्होंने अपने ग्रंथ के प्रतिपाद्य विषय को सूचित किया है। अब इसके साथ टीकाकार की उक्त प्रस्तावना को देखिये, उसमें यही प्रतिज्ञा शिवकुमार से कराई गई है, और इस तरह शिवकुमार को मूलग्रंथ का कर्ता अथवा प्रकारान्तर से कुन्दकुन्द का ही नामान्तर सूचित किया है। साथ ही शिवकुमार के जो विशेषण दिये हैं, वे एक राजा के विशेषण नहीं हो सकते, वे उन महामुनिराज के विशेषण हैं, जो सरागचारित्र से भी उपरत होकर वीतरागचरित्र की ओर प्रवृत्त होते हैं। ऐसी हालत में पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि शिवकुमार महाराज की स्थिति कितनी संदिग्ध है।
"दूसरे, शिवकुमार का शिवमृगेशवर्मा के साथ जो समीकरण किया गया है, उसका कोई युक्तियुक्त कारण भी मालूम नहीं होता। उससे अच्छा समीकरण तो प्रोफेसर ए० चक्रवर्ती नायनार, एम० ए०, एल० टी०, का जान पड़ता है, जो कांची के प्राचीन पल्लवराजा शिवस्कन्दवर्मा के साथ किया गया है।११° क्योंकि स्कन्द कुमार का पर्यायनाम है और एक दानपत्र में उसे युवामहाराज भी लिखा है, जो कुमारमहाराज का वाचक है, इसलिये अर्थ की दृष्टि से शिवकुमार और शिवस्कन्द दोनों एक जान पड़ते हैं। इसके सिवाय शिवस्कन्द का 'मयिदावोलु'-वाला दानपत्र, अन्तिम मंगल पद्य
११०. देखिए, पंचास्तिकायसार के अँगरेजी संस्करण की प्रो. ए. चक्रवर्ती द्वारा लिखित ऐतिहा
सिक प्रस्तावना (Historical Introduction) सन् १९२० ।
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