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________________ अ०१०/प्र०१ आचार्य कुन्दकुन्द का समय / २८१ ९. "जीवस्थान-द्रव्यप्रमाणानुगम में द्रव्यभेदों का निर्देश करते हुए धवला में जीवअजीव के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है। वहाँ जीव के साधारण लक्षण का निर्देश करते हुए यह कहा है कि जो पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध व आठ प्रकार के स्पर्श से रहित, सूक्ष्म, अमूर्तिक, गुरुता व लघुता से रहित, असंख्यात-प्रदेशवाला और आकार से रहित हो, उसे जीव जानना चाहिए। यह जीव का साधारण लक्षण है। प्रमाण के रूप में वहाँ 'वुत्तं च' कहकर समयसार की निम्नलिखित गाथा उद्धृत की है अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसई। जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिहिट्ठसंठाणं॥ ४९॥ "यह गाथा प्रवचनसार (२।८०) तथा पञ्चास्तिकाय (१२७) में भी है।"९० १०. "आगे बन्धस्वामित्वविचय में वेदमार्गणा के प्रसंग में अपगतवेदियों को लक्ष्य करके पाँच ज्ञानावरणीय आदि सोलह प्रकृतियों के बन्धक-अबन्धकों का विचार किया गया है। इस प्रसंग में धवलाकार ने उन सोलह प्रकृतियों का पूर्व में बन्ध और तत्पश्चात् उदय व्युच्छिन्न होता है, यह स्पष्ट करते हुए ‘एत्थुवउजंती गाहा' ऐसा निर्देश कर इस गाथा को उद्धृत किया है आगमचक्खू साहू इंदियचक्खू असेसजीवा जे। देवा य ओहिचक्खू केवलचक्खू जिणा सव्वे॥ "यह गाथा कुछ पाठभेद के साथ प्रवचनसार में इस प्रकार उपलब्ध होती है आगमचक्खू साहू इंदियचक्खूणि सव्वभूदाणि। देवा य ओहिचक्खू सिद्धा पुण सव्वदो चक्खू॥ ३/३४॥" ९१ ११. "प्रकृति अनुयोगद्वार में श्रुतज्ञान के पर्याय-शब्दों का स्पष्टीकरण करते हुए धवला में प्रवचनसार की 'जं अण्णाणी कम्म' आदि गाथा (३/३८) उद्धृत की गयी है।"९२ १२. "जीवस्थान-चूलिका के अन्तर्गत प्रथम 'प्रकृति समुत्कीर्तन' चूलिका में दर्शनावरणीय के प्रसंग में जीव के ज्ञान-दर्शन लक्षण को प्रकट करते हुए धवलाकार ९०. धवलाटीका / षट्खण्डागम / पु.३ / १,२,१ / पृ.२ (षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ०६३५)। ९१. धवलाटीका / षट्खण्डागम / पु.८/३,१७९ / पृ.२६४ (षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ.६३५)। ९२. धवलाटीका / षट्खण्डागम / पु.१३/५,५,५० / पृ.२८१ (षट्खण्डागम-परिशीलन / पृ.६३५)। Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004043
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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